ये शहर ,मुझे राश नहीं आया।
बेगानो ने नहीं , मुझे अपनों ने सताया।
मै समझ रहा था,प्रेम है ये अपनों का,
स्वार्थ के लिए अपनों ने,गले लगाया।

अपनों को अपना समझ, मैंने इक राज़ बताया।
मुझे क्या पता था ?
 अपनों ने मुझे अभियोग लगाया।
ये शहर ,मुझे राश नहीं आया।

बेगानो को छोड़, कोई पास नहीं आया।
हजारों की भीड़ में ,अकेला हो चुका था।
मेरे पास बेगानो का , मेला हो चुका था।
बस अपनों का, कोई खास नहीं आया।

ये शहर ,मुझे राश नहीं आया।
हर वक्त खामोश सा जीवन था,
अपनों के प्रणय को तरसता, मेरा मन था।
क्यो मेरे हयात में,अपनों का प्रकाश नहीं आया?
ये शहर, मुझे राश नहीं आया।


Anurag Maurya

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