बगिया में एक फूल खिला था
दिल उसका भवरे से जुड़ा था
पढ़े - जल रही बिखर रही . . .
पर वो भवरा तो मनचला था
डाली डाली फिरता फिरा था
विवश फूल सब जानता था
पर दिल वो जिस पर हारा था
पढ़े - फिर तरुवर तुम्हें क्यों अहंकार . . .
बस वही उसका सहारा था
वही उसका जग सारा था
एक मीठा सा एहसास जो था प्रेम का
अदभुत सामर्थय वो दे गया विश्वास का
पढ़े - जो आप इक बार घर आ जाते . . .
कि भले ही आज वक्त बुरा है
पर कल दौड़ हमारा होगा
वो मनचला, एक दिन फिर मेरा होगा
दिन हफ्ते मांह वर्ष गुजरे
पढ़े - नासमझी . . .
फिर कुछ और वर्ष गुजरे
अथक निरंतर प्रेमपूर्ण प्रयास
आखिर पल्लवित हो उठा
वो मनचला अब ठहर चुका है
पढ़े - खुश रहिए आप मुस्कराइए . . .
कुछ और वर्ष गुजर चुके हैं
बस ईश्वर कृपा करे अब सदा
बगिया में एक फूल खिला था
पढ़े - जल रही बिखर रही . . .
पढ़े - फिर तरुवर तुम्हें क्यों अहंकार . . .
पढ़े - जो आप इक बार घर आ जाते . . .
पढ़े - नासमझी . . .
पढ़े - खुश रहिए आप मुस्कराइए . . .
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें