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गंगा जब पांच साल की थी तभी गंगा के मां बाबूजी का देहांत हो गया था । पहले मां की मृत्यु हुई उसके छः महीने बाद बाबूजी भी चल बसे । गंगा के बाबूजी को बेटी से बहुत लगाव था इसलिए एक बेटे के जन्म लेने के बाद भी ईश्वर से वो एक बेटी की कामना करते थे । उनके बेटे राघव के जन्म के आठ साल बाद गंगा का जन्म हुआ था । काफी मन्नतें मांगने के बाद गंगा का उनके घर अवतरण हुआ । गंगा देखने में भी बड़ी प्यारी थी । मां बाबूजी की मौत के बाद गंगा और उसके भाई को चाचा चाची ने सँभाला । चौदह साल के होते ही राघव कमाने लगा । अपनी बहन गंगा का ख्याल रखने लगा था । आसपास की कोई भी लड़की पढती नहीं थी लेकिन उसके भाई राघव ने गंगा का स्कूल में दाखिला करवा दिया । हलांकि स्कूल बहुत दूर था । मगर गंगा का भाई साइकिल पर बहन को ले जाते स्कूल और फिर काम से लौटते समय गंगा को वापस ले आता घर । गंगा पढने में भी बहुत तेज थी । पूरे क्लास में सबसे ज्यादा उसके ही नंबर आते थे । टीचर सब गंगा से बहुत प्यार करते थे । गंगा जब सातवीं कक्षा में आई तो किशोरावस्था में प्रवेश कर चुकी थी । उसी साल गंगा के चाचा ने राघव की शादी लाजो से कराई थी । लाजो सांवली सलोनी मुँहफट लड़की थी । राघव अपनी बहन गंगा से बहुत प्यार करता था ये बात लाजो को बहुत चुभती थी। वह तो मौके की तलाश में रहती थी कि गंगा से कोई गलती हो तो राघव के कान भर सके । गंगा तो इन सब चीजों से दूर बस पढाई में दिल लगाती थी बहुत ही मासूम दिल की लड़की थी ।
उसका सपना था पढ लिखकर कुछ बन जाएगी तो गरीबों की सहायता करेगी । गंगा को पता भी नहीं था उसका दुश्मन जन्म ले चुका है जो उसके आसपास ही रहता है । लाजो झूठ मूठ का तबियत खराब होने का बहाना करके पड़ी रहती । गंगा घर के सारे काम काज करती । एक सप्ताह तक गंगा स्कूल नहीं जा सकी । लाजो गर्भवती हो गई तो उसको और बहाना मिल गया । गंगा की पढ़ाई उसे चुभती थी खुद तो काला अक्षर भैंस बराबर थी । गंगा के स्कूल में ही बगल के गांव से ठाकुर साहब का इकलौता लड़का पढने आता था । वह भी पढने में बहुत तेज था । गंगा जब भी स्कूल नहीं जा पाती उसी से मदद ले लेती । दोनों में गहरी दोस्ती हो गई थी । दोनों की दोस्ती के चर्च स्कूल में होते थे । उड़ते उड़ते ये खबर लाजो के कानों तक पहुंची तो उसको एक मिर्च मसाला मिल गया । गंगा को स्कूल से हटाने का । अब तो गंगा खुद साइकिल चलाकर स्कूल जाती थी । एक दिन ठाकुर साहब का लड़का सागर ने कहा उसके एक मित्र से मिलना है फिर दोनों ही साइकिल हाथ से चलाते पैदल ही कुछ दूरी तय करने लगे उसी समय राघव काम से लौट रहा था गंगा को सागर के साथ हँसते देखकर राघव सन्न रह गया । उसे लाजो की बातों से डर लगा । उसने गंगा से कुछ नहीं कहा लेकिन उसकी पढ़ाई छुड़ा दिया । सातवीं तक ही पढ सकी गंगा । दिल पर पत्थर रख लिया गंगा ने । लाजो को मुफ्त की नौकरानी मिल गयी । पूरा दिन गंगा से काम कराते रहती ।
एक दिन चाची से ही पता चला गंगा को कि सागर के कारण राघव ने पढ़ाई छुड़ा दिया । गंगा जाति से चमार थी लेकिन सोच एक क्षत्राणी की तरह थी । गंगा को हकीकत जानकर बड़ी तकलीफ हुई । उसे लगा सबने सागर के साथ उसका रिश्ता जोड़ ही दिया तो अब उससे मैं सच में प्रेम करूंगी अब । फिर गंगा मन ही मन सागर के सपने देखने लगी । एक दिन घर से थोड़ी दूर बकरी के लिए घास लाने गयी थी गंगा तो थककर पेड़ की छांव में सुस्ताने लगी कि छम से कोई आया पीछे से और गंगा की आंखों पर हाथ रख दिया । गंगा डर गयी जोरों से चिल्लायी । जब सामने देखा तो उसके होठों पर मुस्कान आ गयी । शेष अगले भाग में ... >>> गंगा (अमर प्रेम कथा ) भाग -2
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