सांवली सलोनी प्यारी लड़की थी । जब रात को नितिन बेडरूम में आया तो कमरे से भीनी-भीनी खुशबू आ रही थी । निभा ने आज वही साड़ी पहनी थी जो उसने शादी के दिन पहनी थी । ये देखकर नितिन बेकरार होकर निभा को आगोश में भर लिया ।
निभा के चेहरे पर मुस्कान आ गयी ।
"नितिन तुम मेरा साथ तो नहीं छोड़ोगे ना निभा ने नितिन के बालों को सहलाते हुए कहा ।"
"निभा मैं तुम्हें नहीं छोड़ सकता तू मेरी ज़िन्दगी हो
वादा रहा प्यार से प्यार का अब हम न होंगे जुदा ........
नितिन ये गाना गुनगुनाने लगा ।
तभी मैंने उस फोटो वाली लड़की का ज़िक्र कर डाला नितिन से तो, नितिन सकपका गया ।
"निभा मैं क्या करूं? मम्मी शादी फाइनल कर दी है उससे वर्ना वो अपने प्राण दे देंगी ।"
" उन्हें एक बच्चा चाहिए ।" ये सुनकर निभा का दिल बैठ गया ।
नितिन का सारा प्यार उसे बेमानी लगने लगा ।
"निभा तुम मेरे साथ रहो , मैं शादी केवल मम्मी के लिए करूंगा ।" मेरे होठ सिल गए मैंने केवल हां में सर हिलाया और बेड पर सो गयी ।
सारी रात नितिन मुझसे प्यार करता रहा, मेरे हुस्न के कसीदे पढते रहा लेकिन मैं अंदर से मर गयी थी ऐसा लग रहा था जैसे, नितिन मेरे तन मन के साथ खेल रहा हो । नितिन मेरा प्यार मेरा पति था , उसे किसी और के साथ कैसे बाँट सकती थी मैं?
नितिन के लिए ये सामान्य सी बात थी लेकिन मेरे अंदर भूचाल मची थी ।
क्या एक पुरूष के अंदर ऐसी भावनाएँ नहीं होती ?
वह क्यों अपने को किसी के भी साथ बाँट लेता है ?जबकि एक औरत मरते दम तक केवल एक ही पुरूष के साथ बँटना चाहती है और के बारे में सोचने से पहले वह मौत को चुनती है ।
नितिन के लिए मैंने क्या कुछ नहीं किया ,उसके लिए नौकरी छोड़ दिया । घर से बाहर निकलना छोड़ दिया । एक बार वो जो कह देता फौरन मैं मान लेती ।
अपने आप को उसके ही रंग में ढाल लिया ।
"नितिन मेरी आत्मा था , मेरी ज़िन्दगी उसी से शुरू और उसी पर खत्म होती थी ।"
"मगर एक बच्चा न दे सकी जिसके कारण सारे रिश्ते बेमानी हो गए । मैं अपने अस्तित्व को ढूंढने लगी थी आखिर क्या है मेरा अस्तित्व? लेकिन मुझे अपने-आप से कोई जवाब नहीं मिलता था ।"
नितिन की शादी की तैयारियाँ शुरू हो गयी थी ।
"मुझे ऐसा लगता जैसे मेरी मौत का जनाजा तैयार किया जा रहा है । चुपके-चुपके रो लेती थी ।
सासू मां के कहने पर शादी के रस्म भी निभा रही थी ।
नितिन ख़ामोश हो गया था ज्यादा कुछ नहीं बोलता था ।"
नितिन की दूसरी पत्नी के लिए कमरा तैयार किया गया ।
बारात जाने का समय आया तो मैंने भी कपड़े पहनकर हल्का सा मेकअप कर लिया क्योंकि आंसू छिपाना था ।
सभी लोग मुझे देखकर हतप्रभ थे कि "देखो इतनी सुन्दर बीवी होने के बावजूद दूसरी शादी कर रहा है, भीड़ से दूसरी औरत कहने लगी बच्चा पाने के लिए शादी कर रहा है ये तो बांझ है ना?"
ये शब्द हथौड़े की तरह मेरे सर पर पड़े ऐसा लगता था कि गश खाकर गिर पड़ूंगी लेकिन मैंने अपने आप को संभाला ।
बारात के जाने के बाद मैं कमरे में आकर फूट फूटकर रोती रही । आज से मुझे हमेशा के लिए मर जाना था । दिल नितिन को पुकार रहा था नितिन मेरे पास लौट आओ पूरी रात रोते-रोते गुजरी ।
सुबह को आंख लगी ही थी कि सभी के शोर से नींद खुल गई ।
दुल्हन आ गयी देखो दुल्हन आ गयी ।
सासू मां कमरे से निकलकर मुझे आरती की थाल लेकर स्वागत करने कहा ।
मैंने अपने आप को तसल्ली दिया और झूठी मुस्कान के साथ दरवाज़े पर आई ।
नितिन के बगल में उसकी पत्नी कोई और ये एहसास मेरी जान ले रहा था, मगर फिर भी मैंने नितिन और उस लड़की की आरती करके स्वागत किया ।
नितिन हमसे नजरें चुरा रहा था।
सारी रस्मों के बाद मैं अपने बेडरूम में आ गयी ।
मेरे लिए अब इस घर में रहना मुश्किल था।
कलेजे पर साँप लोट रहे थे ।
रात में नयी दुल्हन के कमरे में जाने से पहले नितिन की मां ने नितिन को एक सोने का झुमका दिया था ।
मैं देखना चाहती थी कि क्या सच में नितिन सुहागरात मना लेता है ? क्या पुरूष इतना खुदगर्ज होता है?
उसे स्त्री से प्रेम नहीं केवल अपनी जरूरत से प्रेम होता है?
नितिन कमरे में चला गया था । मेरी रूह तड़प रही थी । मेरा दिल नहीं माना तो मैंने चुपके से खिड़की के पर्दे हटाकर देखा उस समय रात के बारह बज रहे थे ।
नितिन ने उस लड़की के कानों में झुमके पहना दिया ।
और फिर आगे का दृश्य हमसे देखा न गया ।
मैंने सोच लिया था अब मुझे क्या करना है ।
नितिन चाहता तो बच्चे को गोद ले सकता था लेकिन अपनी मां का सहारा लेकर अपनी ख्वाहिश पूरी कर रहा था । अपनी मां की बात मानना जरूरी थी ।
अपनी पत्नी के जज़्बातों का खून कर डाला उसने ।
ऐसा पति किसी औरत का नहीं हो सकता ।
मेरे दिल में अब नितिन के नफरत की लहर उठ गयी ।
अगली सुबह मैंने अपना सामान लेकर नितिन से विदाई लेने आ गयी ।
नितिन ये देखकर हैरान हो गया । मुझे खींचकर अपने बेडरूम में लाया और गले से लगकर प्यार भरी बातें करने लगा । मगर वो सब क्या कोई फायदा नहीं होने वाला था । मैंने सख्ती से उसको अपने से अलग कर दिया और अपना मंगलसूत्र उसके हाथ में रख दिया ।
"ये अपनी नयी पत्नी को पहना देना" फिर मैंने सामान उठाया और निकल गयी । सासू मां के चेहरे पर मुस्कान थी और नितिन हक्का-बक्का होकर मेरे पीछे-पीछे बाहर आया, कभी अपने हाथ के मंगलसूत्र को देख रहा था तो, कभी अपनी मां के चेहरे और कभी अपनी नयी पत्नी को जो शोर सुनकर बाहर निकल आई थी ।
शेष अगले भाग में
सारी रात नितिन मुझसे प्यार करता रहा, मेरे हुस्न के कसीदे पढते रहा लेकिन मैं अंदर से मर गयी थी ऐसा लग रहा था जैसे, नितिन मेरे तन मन के साथ खेल रहा हो । नितिन मेरा प्यार मेरा पति था , उसे किसी और के साथ कैसे बाँट सकती थी मैं?
नितिन के लिए ये सामान्य सी बात थी लेकिन मेरे अंदर भूचाल मची थी ।
क्या एक पुरूष के अंदर ऐसी भावनाएँ नहीं होती ?
वह क्यों अपने को किसी के भी साथ बाँट लेता है ?जबकि एक औरत मरते दम तक केवल एक ही पुरूष के साथ बँटना चाहती है और के बारे में सोचने से पहले वह मौत को चुनती है ।
नितिन के लिए मैंने क्या कुछ नहीं किया ,उसके लिए नौकरी छोड़ दिया । घर से बाहर निकलना छोड़ दिया । एक बार वो जो कह देता फौरन मैं मान लेती ।
अपने आप को उसके ही रंग में ढाल लिया ।
"नितिन मेरी आत्मा था , मेरी ज़िन्दगी उसी से शुरू और उसी पर खत्म होती थी ।"
"मगर एक बच्चा न दे सकी जिसके कारण सारे रिश्ते बेमानी हो गए । मैं अपने अस्तित्व को ढूंढने लगी थी आखिर क्या है मेरा अस्तित्व? लेकिन मुझे अपने-आप से कोई जवाब नहीं मिलता था ।"
नितिन की शादी की तैयारियाँ शुरू हो गयी थी ।
"मुझे ऐसा लगता जैसे मेरी मौत का जनाजा तैयार किया जा रहा है । चुपके-चुपके रो लेती थी ।
सासू मां के कहने पर शादी के रस्म भी निभा रही थी ।
नितिन ख़ामोश हो गया था ज्यादा कुछ नहीं बोलता था ।"
नितिन की दूसरी पत्नी के लिए कमरा तैयार किया गया ।
बारात जाने का समय आया तो मैंने भी कपड़े पहनकर हल्का सा मेकअप कर लिया क्योंकि आंसू छिपाना था ।
सभी लोग मुझे देखकर हतप्रभ थे कि "देखो इतनी सुन्दर बीवी होने के बावजूद दूसरी शादी कर रहा है, भीड़ से दूसरी औरत कहने लगी बच्चा पाने के लिए शादी कर रहा है ये तो बांझ है ना?"
ये शब्द हथौड़े की तरह मेरे सर पर पड़े ऐसा लगता था कि गश खाकर गिर पड़ूंगी लेकिन मैंने अपने आप को संभाला ।
बारात के जाने के बाद मैं कमरे में आकर फूट फूटकर रोती रही । आज से मुझे हमेशा के लिए मर जाना था । दिल नितिन को पुकार रहा था नितिन मेरे पास लौट आओ पूरी रात रोते-रोते गुजरी ।
सुबह को आंख लगी ही थी कि सभी के शोर से नींद खुल गई ।
दुल्हन आ गयी देखो दुल्हन आ गयी ।
सासू मां कमरे से निकलकर मुझे आरती की थाल लेकर स्वागत करने कहा ।
मैंने अपने आप को तसल्ली दिया और झूठी मुस्कान के साथ दरवाज़े पर आई ।
नितिन के बगल में उसकी पत्नी कोई और ये एहसास मेरी जान ले रहा था, मगर फिर भी मैंने नितिन और उस लड़की की आरती करके स्वागत किया ।
नितिन हमसे नजरें चुरा रहा था।
सारी रस्मों के बाद मैं अपने बेडरूम में आ गयी ।
मेरे लिए अब इस घर में रहना मुश्किल था।
कलेजे पर साँप लोट रहे थे ।
रात में नयी दुल्हन के कमरे में जाने से पहले नितिन की मां ने नितिन को एक सोने का झुमका दिया था ।
मैं देखना चाहती थी कि क्या सच में नितिन सुहागरात मना लेता है ? क्या पुरूष इतना खुदगर्ज होता है?
उसे स्त्री से प्रेम नहीं केवल अपनी जरूरत से प्रेम होता है?
नितिन कमरे में चला गया था । मेरी रूह तड़प रही थी । मेरा दिल नहीं माना तो मैंने चुपके से खिड़की के पर्दे हटाकर देखा उस समय रात के बारह बज रहे थे ।
नितिन ने उस लड़की के कानों में झुमके पहना दिया ।
और फिर आगे का दृश्य हमसे देखा न गया ।
मैंने सोच लिया था अब मुझे क्या करना है ।
नितिन चाहता तो बच्चे को गोद ले सकता था लेकिन अपनी मां का सहारा लेकर अपनी ख्वाहिश पूरी कर रहा था । अपनी मां की बात मानना जरूरी थी ।
अपनी पत्नी के जज़्बातों का खून कर डाला उसने ।
ऐसा पति किसी औरत का नहीं हो सकता ।
मेरे दिल में अब नितिन के नफरत की लहर उठ गयी ।
अगली सुबह मैंने अपना सामान लेकर नितिन से विदाई लेने आ गयी ।
नितिन ये देखकर हैरान हो गया । मुझे खींचकर अपने बेडरूम में लाया और गले से लगकर प्यार भरी बातें करने लगा । मगर वो सब क्या कोई फायदा नहीं होने वाला था । मैंने सख्ती से उसको अपने से अलग कर दिया और अपना मंगलसूत्र उसके हाथ में रख दिया ।
"ये अपनी नयी पत्नी को पहना देना" फिर मैंने सामान उठाया और निकल गयी । सासू मां के चेहरे पर मुस्कान थी और नितिन हक्का-बक्का होकर मेरे पीछे-पीछे बाहर आया, कभी अपने हाथ के मंगलसूत्र को देख रहा था तो, कभी अपनी मां के चेहरे और कभी अपनी नयी पत्नी को जो शोर सुनकर बाहर निकल आई थी ।
शेष अगले भाग में
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