लड़की के आत्मविश्वास के समक्ष बूट बटुक यादव का प्रचंड प्रकोप ठंडा पड़ने के कागार पर आ गया| वह चाहता तो था कि कोई इस लड़की को मार-पीट कर यहाँ से भगाये| पर गाँव वाले मजे लेने के फुल मूड में थे| किसी को क्या ज़रूरत की किसी दूसरे के फटे में सिर घुसा आफत मोल ले| इतने में थानेदार साहब महिला पुलिसकर्मी के साथ आ धमके| बूट बटुक यादव कुछ ले, दे कर पुलिस को अपनी ओर कर लिये| लेकिन कृष्णकली के आत्मविश्वास के समक्ष पुलिसिया दवाब भी पस्त होता चला गया| दोनो बालिग जो थे|
कृष्णकली पहाड़ के जैसे बाराती को रोके अपने-आप पर अडिग रही| पुआल के आग के तरह बात घसीटा यादव तक भी पहुँच गयी| वह भी अपने गाँव के मुखिया, सरपंच व कुछेक गणमान्य लोगों को लेकर आ धमका| गाँव भर में चुटकियों का चटकार चटखने लगा|
खबड़ फ़ानूस के तरह तैरती हुई जिला भर के मिडियाकर्मियों के समक्ष भी पहुँच गयी| अखबार, टेलिविज़न न्यूज चैनल वालों का ज़मावारा लगने लगा| नारी निकेतन वाली महिलाओं ने भी घेराबंदी कर दी बूट बटुक यादव के दरवाजे पर| सब कृष्णकली के पक्ष में ही जा रहा था| बूट बटुक यादव को अपनी प्रतिष्ठा बचाने का कोई मार्ग नज़र नहीं आ रहा था| मामला बिगड़ते देख सबको लेकर पुलिस थाना के तरफ चल दिया| सर्वसम्मति से पंचायत बुलाया गया| बूट बटुक यादव के बेटे बुलेटिन फूलचनमा यादव और उसके दूसरे बेटे बमकल यादव व पत्नी को भी ले जाया गया| कृष्णकली के साथ थाना| बाकी ग्रामीण व मिडिया खुद-ब-खुद ही पहुँच गये थाना|
कृष्णकली को जितना समझाया जाता वह और उतने ही तेजी से भड़कती जाती| कहने लगती "जिस समय साइकिल पर हमको घुमाता या चुम्मा लिया करता उस समय सोचना चाहिए था| जब प्यार किया उस समय क्यों नहीं डरा अपने बाप से फिर अब क्यों डरता है"? कृष्णकली की बात भी वाजिब ही थी| अाखिर दोनो बालिग जो थे|
जब कृष्णकली से पूछा गया फूलचनमा से विवाह करेगी तो वह स्पष्ट शब्दों में कह दी - "बिल्कुल करेंगे बियाह फूलचनमा यादव से .....ठीक है"| अपना दुखड़ा सुनाते हुए कहने लगी - "हम बहुत पियार करते हैं बुलेटिन फूलचनमा यादव जी से ......ठीक है| जिऐंगे तो फूलचनमा जी के संग में .....ठीक है| और मरेंगे तो फूलचनम जी के संगे ही .....ठीक है| नून रोटी खाएंगे चाहे मांड भात खाएंगे .....ठीक है| पर रहेंगे फूलचनमा जी संगे ही .....ठीक है| हमारे भैया को जब पता चला हम यहाँ आ रहे है .....ठीक है| तो वह हमको बेल्टे-बेल्टे मारे .....ठीक है| फिर भी हम फूलचनमा जी से ही पियार करते रहे .....ठीक है| हमको कुच्छों नहीं चाहिए .....ठीक है| बस फूलचनमा जी हमसे पियार करते रहे .....ठीक है| हमरा सास-ससुर हमको बढ़िया से रखे .....ठीक है| इसके आलावा हमको कुच्छो नहीं चाहिए .....ठीक है|
नारी निकेतन वाली महिलाओं के दबाव में जब थानेदार साहेब बुलेटिन फुलचनमा यादव से इस प्रसंग के विषय में पूछे तो वह अबकि हिम्मत करके स्वीकार्य कर लिया कि वह कृष्णकली कुमारी से पियार करता है| फूलचनमा के स्वीकारनामा के साथ ही मामला सबके हाथों से निकल गया| बूट यादव सर पीटने लगे| वो कहते है न कि मियाँ बीवी राजी तो क्या करेगा काजी| थानेदार साहेब ने मुहर लगा दिया कि इन दोनो का लगन मंडप यहीं थाने में लगा कर विवाह कार्यक्रम संपन्न किया जाए|
घसीटा यादव को यह फैसला सुन कर चुप न रहा गया| उसने भी मुकदम्मा दायर करने की अपील कर दी, तत्काल वहीं थाने में| ऐसे में दोनो गाँवों के पंचों ने बीच में आकर मामला सँभाला| बूट बटुक यादव के दूसरे बेटे बमकल यादव के संग विवाह प्रस्ताव रखके|
बमकल यादव मर्द के भेष में एकदम्म मौगा| छः साल से मैट्रिक में फेल हो, होकर हैट्रिक लगाने के मूड नें नज़र आ रहा था| पढ़ता कम और भैंस छोड़कर बकड़ी चराने में अधिक इंट्रेस्ट रखता था और चरवाहिनों के संग बैठ कर जूँ निकलता, चोटी बनाते फिरता था| एकदम लुंज-पुंज शरीर वाला कनगौजर जैसा मर्द|
बमकल के विवाह का प्रस्ताव आते ही बमकल की माँ अपनी मुँह के दमकल से थूक के फुहारें संग गालियों का केमिकल प्रहार करती रही कृष्णकली पर| किंतु एक न चल सका पंचायत के फैसले के आगे| अखिर बूट यादव भी क्या करता एक तो पंचायत का फैसला था उस पर से थानेदार साहब का मुहर| बमकल का ब्याह तो करना ही पड़ेगा| यही अंतिम निर्णय हुआ|
कृष्णकली संग बुलेटिन फूलचनमा यादव का विवाह थाना कैंपस में ही विधि-विधान पूर्वक संपन्न किया गया| और बमकल को दुल्हा बना कर घसीटा यादव के यहाँ बिरखी कुमारी से ब्याहने ले जाया गया|
दूसरे दिन राज्य के सभी प्रमुख समाचार पत्रों व टी.वी. का हेड लाइन था "कृष्णकली ससुराल चली .....ठीक है"|
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें