हम तो ये समाचार सुनते ही भौंचक रह गये| मामला इतना बढ़ सकता था ऐसा हमने कभी सोचा भी नहीं था| हम अचरज में थे ही कि तभी कृष्णकली एक कटोरी में कटहल का कोफ्ता व दूसरे में दही भर कर देने आ गयी| हमको बहुत प्यार से कहती है - "तनिक आप भी खा लीजिएगा और बाकी फूल जी को दे दीजिएगा"| हमारे आश्चर्य का ठिकाना न रहा| हम स्तब्ध होकर ले लिए दोनो कटोरी| फूल उस समय नहाने गया हुआ था| यह क्रियाकलाप लगभग रोज का ही हो गया था| हमको क्या हम दोनो के इश्क़ के बीच मलाई खाने में जुट गये| कभी-कभी तो गिलास भर दूध में से आधा से ज्यादा हम ले लेते बाकी में पानी मिला कर फूलचनमा के लिए रख देते थे| साग-सब्जी का अब अकाल नहीं रहता हमारे कमरे में| कृष्णकली की माँ भी अब फूलचनमा के लिए भेज दिया करती थी कुछ-कुछ खाने-पीने की सामग्रीयाँ| बुढ़िया को भी अपने कृष्णकली के लिए फूलचनमा बहुत पसंद था| दोनो थे भी तो एक ही जाति के; तभी ललचा गयी होगी बुढ़िया| बैठे-बिठाये जो पढ़ा-लिखा लड़का मिल रहा| इसे कहते है हींग लगे न फिटकरी और रंग चढ़े चोखा| ये सब देख कर मजा तो हमको खूब आ रहा था| बहुत शरीफ बना फिरता था अब आएगा मजा|
घर से आने के तीन-चार दिन बाद हम गर्मी से परेशान होकर बाहर छत पर घूमने लगे तभी कृष्णकली भी छत पर आ गयी| हमको देख ठठा कर हँसने लगी| हम दौड़ कर अपने कमरे में गमछा लेने पहुँच गये| उस समय हम अंडरवियर में ही थे न इसलिए जरा शरमा गये हम| जब हम दुबारा लौट कर आये तो कृष्णकली भी टुघर-टुघर कर हमारे नजदीक आ गयी| हमसे बात करने|
- "ऐ! खदेरन, बहुत गर्मी है न"|
"हाँ! ऊ तो है"| - हम तनिक लजाते हुए गर्दन घुमा कर बोले|
- "आज तरकारी खाये थे आप? हम अपने हाथ से बनाए थे"|
- "हाँ! खाये तो थे| बहुत टेस्टी तरकारी बनाते है आप तो| बहुत स्वाद है आपके हाथ में"|
- "सच्ची...! फूलचनमा जी भी यही कहते है"|
- "लगता है फूल से आप बहुत प्यार करती है"?
कृष्णकली मुस्कुराते हुए झेंप गई| बात को घुमाते हुए पूछने लगी - "ऐ! खदेरन ई बताइए फूल जी का आधा नाम अंग्रेजी और आधा हिंदी में क्यों है"?
- "ऊ क्या है न कि उसके दादा अंग्रेज के यहाँ नौकरी करते थे| वहीं से उसके खानदान में सबका नाम अंग्रेजी में रखा जाने लग गया| जानकारी के अभाव में फूल के बाबू का नाम बूट रख दिया गया क्योंकि उसके दादा को मालूम ही नहीं था कि बूट अंग्रेज लोग जूता को कहते है"|
दोनों ही-ही करने लगे| तभी फूल का फोन कृष्णकली के मोबाइल पर टुनटुनाने लगा| पैसे बचा-बचा कर फूल ने एक मोबाइल खरीदा था कृष्णकली से बतियाने के वास्ते| कृष्णकली फोन रिसीव करके बतियाते हुए वहाँ से चल देती है| अपने प्रेमी से प्रेमपूर्वक बातें|
हमको यह सब देख कर अनंत आनंद मिल रहा था| पर अंदर-ही-अंदर कोई आवारा बादल भी हौले से मन के भीतर जम रहा था जो किसी के समक्ष बरसने को आतुर था| रविवार के दोपहर में जब चुभक्कन भैया हमसे मिलने हमारे कमरे पर आये तो बतों, बातों में मुँह के ढ़क्कन से उफ़न कर फूलचनमा-कृष्णकली प्रसंग बाहर आने लग गया| हमने वार्तालाप को रोकने की बहुत कोशिश की; पर प्रवाह अत्यधिक तीव्र होने के कारण रूक न सका|
चुभक्कन भैया को तो मानों कोई अल्लादीन का चिराग मिल गया हो; जिसके तासीर से अथाह स्वर्ण मुद्राएं मिल गयी हो| जिसे वितरण कर वह गरीबों पर एहसान करना चाहते हो| गाँव जाने पर चुभक्कन भैया ने सबसे पहला काम किया कि फूलचनमा-कृष्णकली कथा को व्याकरण के अंलकारों से अलंकृत कर शब्दों को अनुप्रासों में चुभका-चुभका कर परोसने लगे पूरे गाँव में| लोग चटकारें ले-लेकर सुनने, सुनाने लग गये थे इस प्रेम कहानी को| उड़ते-उड़ते बूट बटुक यादव के कानों के खिड़की से भी कनखियाँ मारती इतराती हुई बात पहुँच ही गयी|
बैचेन होकर बूट बटुक यादव जल्दी-जल्दी अपने परम मित्र घसीटा यादव को संदेश भिजवा कर बुलवाया| बिना सोचे-विचारे ही घसीटा यादव की बेटी बिरखी कुमारी संग लगन तय कर दिया|
इधर फूलचनमा सी-टेट का परीक्षा उतीर्ण कर चुका था| सोच रहा था पास होते ही बचाये हुए पैसों से कृष्णकली के लिए चाँदी का छल्ला खरीद कर निशानी दे देगा| लेकिन उस से पहले ही बाबू जी का संदेशा आ गया गाँव आने को|
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