हम तो वहाँ से पहुँच गये थानेश्वर स्थान महादेव मंदिर, पर फगुनिया के कलेजा पर धमिनियाँ साँप लोटने लगी| बाँस के बेना के जैसा उसका कलेजा हौंकने लगा| वह सोच, सोच कर डर से घबड़ाने लगी| कहीं अ‍ात्महत्या सब तो नहीं कर लेगा खदेरना| आँख चौंधियाता फिर अँधेरा हो जाता| भीतर के अकुलाहट में फगुनिया को फैसला लेना पड़ा तेतरी को खदेरना के पीछे-पीछे भेजने का| कितनी बेचैन हो कर कही थी हमारी फगुनिया - "ऐ तेतरी जाओ खदेरन को समझा-बुझा दो घर चला जाएगा बेचारा"|

हम झटपट में समस्तीपुर के महादेव मंदिर तो पहुँच गये पर फगुनिया नहीं आयी उसके जगह तेतरी हमको समझाने-बुझाने पहुँच गयी| तेतरी हमको जितना समझाती हम और अधिक आवेशित होते जाते| जोश-जोश में हम गुस्सा से लाल-पीला होते हुए मंदिर में रखे सिंदूर के थाली से मुट्ठी भर सिंदूर उठाये और तेतरी का माँग भर दिए| जब तक होश आया तब तक तेतरी कुमारी, बाबा की दुलारी हमारी तेतरी देवी बन चुकी थी| एक तो फगुनिया का गम हमको पहले से ही था ऊपर से तेतरी के सरपंच ने हमारा बोलबम निकलवा दिया| हमारा हाल सेमर के रुई के तरह हो गया था जो न पेड़ से ही लगा हो और न हवा के संग उड़ ही पा रहा हो| दिल से बस एक ही चीज निकल रहा था -"ऐ! तेतरी तुम न लात मारी, न मारी घुँसा; फिर भी करेजा को तड़तड़ा दी"|

फगुनिया का फागुन कब बीत गया पता ही नहीं चला घर-परिवार, समाज के दुत्कार में| अब तो तेतरी के देह के देहरी पर जेठ अंगराई लेने लगा| हम फगुनिया के गम में रेडियो पर दर्द भरे गाना सुनते हुए जंगल-झाड़, खेत-खलिहान में भटकते रहते| महादेव कमस मन तो कर रहा था हैंड-पाईप में छलांग लगा कर डूब मरे, पर ससुरा कूदने का रस्ता ही नहीं था| अपने दर्द के वशीभूत हो हम उस दिन नहर किनारे वाले टूटे पुल पर बैठे रो रहे थे कि तभी वहाँ गाँव के तीन-चार संघाती पहुँच गया| हमको रोता देख कर बहुत समझाया, बुझाया सबने| पर हमको तनिक भी ढ़ांढ़स न बंधी, हम और फूट-फूट कर रोने लगे| हमको ऐसे रोते देख सबको दया आने लगा| सब मिल कर हमको गम भुलाने के लिए वहीं लगभग आधा किलोमीटर पर बन रहे महुआ के शराब को पीलाने टीकट पासवान के यहाँ ले गया| पहले तो हम ना-ना करते रहे पर सबके कहने पर हम जी भर छका कर शराब पीने लगे| इतना पीये की सुध-बुध तक खो गये| हमको, हम पर ही कंट्रोल नहीं रहा| सब दोस्त लोग हमको सँभाल कर घर पहुँचा दिया|

घर पहुँचे तो तेतरी हमको बहुत सँभाल कर कमरे में ले जाकर बिस्तर पर सुला दी| हमारा नज़र जब तेतरी पर पड़ा तो लगा जैसे फगुनिया हमको गले लगाने को कह रही है| हम तेतरी को पकड़ कर लता के झाड़ के जैसे लिपट गये| नशा में तो हम पहले से ही थे उस पर से तेतरी के यौवन का मादक अदा हमको मदहोश करने लगा| हम आऊ देखे, न ताऊ देखे एक ही झटके में विकेट मैदान में गाड़ कर हर एक बॉल पर चौका-छक्का मारने लग गये| जब तक कैच आउट नहीं हुए तब तक धाँय-धाँय बेटिंग करते ही रह गये हम|

दो महीने बाद हमारी माई हमको गाँव से दरभंगा के लिए फिर से पढ़ने को भेज दी| वो भी जबर्दस्ती| हमको गाँव से जाने का मन नहीं था फिर भी जाना पड़ा| ऊ क्या था न कि उस रात गलती से तेतरी के यौवन के मटकी में हमारे जवानी का घी जम गया था| बेमन से हम दरभंगा तो चले आये पर हमको घर आने का तो बहुत मन करता था लेकिन घरवालों के डर से जा नहीं पाता था| आठ-नौ महीने बाद जब हमको चुभक्कन भैया कहने आये तुमको घर से बुलाहट आया है तो हमारा मन खुशी से गदगद हो गया| इतना खुश हुए कि हम लाइट हाउस में जाकर दिनेशलाल निरहुआ और आम्रपाली दुबे की नयी वाली भोजपुरी फिल्म देख आये| घर पहुँच कर जैसे ही हम आँगन में खाट पर बैठे कि भौजी एक बच्चा लाकर हमारे गोद में रख कर नेग माँगने लग गयी| हम तो भौंचक्का होकर अचरज से बच्चा को देखते ही रह गये| और हमारे मुँह से अचानक निकल गया ई तो एकदम्म फूलगेना जैसन लग रही है| फूलगेना निरहुआ के फिल्म में हिरोइन आम्रपाली दुबे का नाम था|

फूलगेना; हमारी बेटी| उसके जनम के बाद तो हमारा जिंदगी ही बदल गया| हम तो आये थे दरभंगा से फगुनिया के बारे में हाल-चाल पता करने| पर फूलगेना के नन्हीं-नन्हीं आँगुलियों के पकड़ के आगे सब भूल गये| लेकिन फूलचनमा यादव के प्रति दिल में गाँठ रह ही गया| अगर ऊ साथ दिया होता तो आज फगुनिया हमारी होती.....!

हम जब गाँव से लौट कर पुनः दरभंगा आये तो देखते है कि यहाँ का मौसम बदला हुआ है| फूल अब तक बुलेटिन फूलचनमा यादव बन चुका था| हुआ यूँ कि एक दिन फूल का सी-टेट का एडमिट कार्ड पोस्ट से आया जो कृष्णकली के हाथ लग गयी| जिसके एड्रेस में लिखा था नाम बुलेटिन फुलचनम यादव, पिता का नाम बूट बटुक यादव और पता कृष्णकली के चाचा के घर का| फिर क्या था तब से कृष्णकली जब-तब शुरू हो जाती है आकाशवाणी के दरभंगा केंद्र से प्रस्तुत है आज की ताजा बुलेटिन के साथ कृष्णकली कुमारी| मौसम वैज्ञानिक का मानना है कि आज भारी चुम्बनों की बरसात होने की संभावना है शहर के बुलेटिन फुलचनमा यादव के गालों पर|

Rajan Singh

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