सगुन की बातें अभी खत्म भी नहीं हुई थी कि सूबा जोरदार धमाके से दहल उठा| समीपस्थ टेकरी से धुँ-धुँ करके आग की लपटें उठने लगी| गोलियों की ठाँय-ठाँय आवाज वादी के हिमखण्ड दरकने लगे| मेजर मोहित सूर्यवंशी फूर्ती से उठ बंदूक उठा लिए| सूबेदार दानिश वजाहत साहब को कह - "आप जल्दी से आला अफ़सरों को वायरलेस से सूचित करके मुझे कवर दें| आज इन काफिर मुजाहिदों का खैर नहीं"|
मेजर साहब गोला-बारूदों का बैग काँधे पर लादते हुए टावर से उतर कर मैदान में पहुँच गये थे| सूबेदार दानिश वजाहत जल्दी-जल्दी हेड क्वार्टर को घटना स्थल का सूचना दे, मेजर साहब के पीछे-पीछे दौड़ कर कवर देने लग गये|
सिलसिले मुलाकातों का मत छोड़िएगा !!!  - भाग 1   ---   सिलसिले मुलाकातों का मत छोड़िएगा !!!  - भाग 2   ---   सिलसिले मुलाकातों का मत छोड़िएगा !!!  - भाग 3   ---   सिलसिले मुलाकातों का मत छोड़िएगा !!!  - भाग 4   ---   सिलसिले मुलाकातों का मत छोड़िएगा !!!  - भाग 5
दोनों तरफ से गोलियों की बौछारें होने लगी| बारूद के धुएं से आसमान काला पड़ने लगा| चील, कौआ के कर्कश स्वर से सरांध की बू आने लगी| तीन-चार मिनट में हेड क्वार्टर से आये जवानों की टुकड़ी अपनी-अपनी पोजीशन लेकर तोप, बंदूक, राइफल्स से हर एक वार का जवाब देने लगे| तब तक मेजर साहब व सूबेदार साहब दो ही जवान पर दुश्मनों को एहसास न होने दिए यहाँ कितने जवानों का काफिला है| बहादुरी से दोनों वीर लड़ते हुए दुश्मनों का छक्के छुड़ाते रहे| तभी एक बम का गोला मेजर साहब के पाले में आ कर गिरा| जब तक दोनों वीर खुद को सँभालते, इतने में ही बम फट गया| दोनों जवान दूर जाकर फेंकाते हुए गिरे|
झुलसे हुए काले आधी-अधूरे बदन से लाल-लाल खून के फव्वारें उठ धरती माता की पाँव को पखारने लगा| अपने बहादूर पुत्र के रक्त से रक्तरंजित महावर लगा भारत माता आँखों में अश्क़ भर अपनी गोद में समेटने लगी|
सिलसिले मुलाकातों का मत छोड़िएगा !!!  - भाग 1   ---   सिलसिले मुलाकातों का मत छोड़िएगा !!!  - भाग 2   ---   सिलसिले मुलाकातों का मत छोड़िएगा !!!  - भाग 3   ---   सिलसिले मुलाकातों का मत छोड़िएगा !!!  - भाग 4   ---   सिलसिले मुलाकातों का मत छोड़िएगा !!!  - भाग 5
अर्धममूर्छित अवस्था में भी मेजर मोहित सूर्यवंशी के ओष्ठ पर मोहक मुसकान था| आँखों से रिसते आँसू की रेखा और धुंधलाते नज़र में सगुन की अंतिम विदाई वाली छवि| जब उनके ड्यूटी पर आते समय वह काँधे पर काँधा डाले रेल के पटरियों से होते हुए 'सिलसिले मुलाकातों का न छोड़िएगा' गाना सुनाते हुए मेजर साहब के संग-संग आयी थी स्टेशन तक| और फिर धीरे-धीरे पीछे छूटती चली गयी थी|
मेजर मोहित सूर्यवंशी संग सूबेदार दानिश वजाहत के प्राण-पखेरू उड़ चुके थे| मासूम चेहरे पर भारत माता के चरणों में प्राण अर्पण करके शहीद होने का सुकून लिए शहादत को गले लगाने का|

Rajan Singh

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