अब आपलोग सोच रहे होंगे ई ससुरी फगुनिया कहाँ से आ गयी बीच में| पर क्या करें? न गरियाते बनता है और न ही अपना ही सकते है उसको हम| कभी हमारी जान हुआ करती थी| भैया की छोटकी साली| जब-जब वह हमको करेजा कह कर बुलाती थी तो लगता था जैसे कलेजा चीर कर उसको दिल में बसा लें| बहुत पियार करते थे हम फगुनिया को| उसको एक नज़र देखते ही दिल चाँद के फुनगी पर बैठ कर ख्वाब देखने लगता था| बोले तो एकदम लल्नटॉप थी हमारी फगुनिया| उसके तन का वज़न तो पूछिए ही मत, तीन हाथी मरा होगा तब जाकर हमारी फगुनिया पैदा ली होगी| फिर भी जब वह ठुमुक-ठुमुक कर चलती थी तो हमारे पेट में घिरनी नाचने लगता था और आटा चक्की के जैसे कलेजा धुकधुकाने लगता था| लेकिन मुँहझौंसी हमारी भाभी को फूटी आँख नहीं भाती थी हमारी फगुनिया| दुष्ट कहीं की|
नैहर से लेकर सासुराल तक ऐसा ढ़ोल बजायी हमारे प्रेम कहानी की, कि हम सब जगह से बुरबक बनके रह गये| इतना पर भी भाभी दम नहीं ली, धौंछी कहीं की| हमको हमारी फगुनिया से लड़वाने में कोई कसर नहीं छोड़ी| जब-जब हमारी फगुनिया हमसे लड़ती थी तो ऐसा लगता जैसे हमारे दिल का महुआ कच्चे में ही रस चुआने लगा हो| आंत ऐंठने लगता| मगज पर भाँप के जैसे लहर उठ कर विलाने लगता| हम तो न मरते थे, न जीते थे बस अंदर ही अंदर कुहुकते रहते थे| पर हम भी ठान लिए थे बियाह करेंगे तो फगुनिया से ही करेंगे; नहीं तो किसी से नहीं करेंगे| जब हम सब जगह से बदनाम हो ही गये है तो लिहाज़ किसका रखें| हमने भी आव देखा न ताव देखा फगुनिया को भगा कर बियाह कर ले जाने का पिलान(प्लान) बना लिए| फूल से सलाह-मशविरा लिये तो उसने भी कहा रुपया-पैसा का इंतज़ाम कर देगा वह किसी से शूद-ब्याज पर| हम भी जोश में थे ही उसका सभी शर्त मंजूर कर लिये| फगुनिया को भी हम मना लिए भागने के लिए|
नियत दिन हम रोसड़ा बाजार में जाकर फगुनिया का इंतज़ार करने लगे| वहीं फूल भी रुपैया-पैसा का इंतज़ाम करके आने वाला था| वहाँ से हम थानेश्वर स्थान महादेव मंदिर समस्तीपुर जाकर बियाह करते उसके बाद गोरखपुर निकल जाने का पिलान था हमारा| फगुनिया अपनी सहेली तेतरी को साथ लेकर पतलापुर गाँव से रोसरा के दुर्गा मंदिर में आ गयी| जहाँ हम पहले से ही मौजूद थे| तेतरी तीन भाई के बाद इकलौती बहन| फगुनिया की हमराज एकदम पक्की वाली बहिनपा| हमलोग अहर-पहर फूल का इंतज़ार करते रहे पर वो गद्हे के सिर से सींग के जैसे गायब हुआ सो तीन महीने बाद जाकर मिला हमको| मर्द के नाम पर कलंक साला, चोट्टा|
महादेव कसम उस समय मन तो कर रहा था कि ससुरा एक बार फूलचनमा यादव मिल जाता तो गर्दन मड़ेर कर आंत में घुसा देता| मरता न क्या करता जैसा हाल हो गया था हमारा उस समय|
हम फिर भी फगुनिया पर जोर देते रहे भाग चलने के लिए| पर वो तो बहुत बड़ा वाला ज़ालिम निकल गयी| कहने लगी "भक्कचौंधर हो गये है क्या, ऐ खदेरन? बिना रुपैया-पैसा का भाग कर जाइएगा कहाँ? आप तो बकलोल के बकलोल ही रह गये| कम से कम एेतना रुपैया-पैसा का इंतजाम तो कर लेते कि एक-आध महीना सही से गुज़ारा जो जाता| हम तो ऐसन निखट्टू मरद के साथ नहीं जाएंगे, चाहे कुछ हो जाए| राम कसम आपके चक्कर में हम अपना जीवन बर्बाद नहीं करेंगे"| हम घिघियाते रहे, मनाते रहे| पर फगुनिया के कान पर एक ज़ूँ तक न रेंगी| अंत में हम भी खिसिया कर वहाँ से चल दिए| जाते-जाते हम तड़क-भड़क दिखा कर कहते गये - "आज भर दिन थानेश्वर स्थान महादेव मंदिर में इंतज़ार करेंगे| अगर नहीं आयी तो जिंदगी भर मुँह नहीं देखेंगे हम आपका"| साइकिल उठाये और हम स्पीड में वहाँ से निकल गये|
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