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मौत का आखिरी पड़ाव था दयालाल के प्राण थे जो छूटने का नाम ही नहीं ले रहे थे । भगवान् से विनती कर करके थक चुका था दयालाल । ऐसी हालत थी उसकी कि बाथरूम जाने के लिए भी उठ नहीं पाता था । बेटे-बहू भी परेशान थे । एक महीने से घर का माहौल मातम भरा था । मगर दयालाल की मौत आ नहीं रही थी । कुछ भी बोल नहीं पाता था लेकिन सबकुछ सुनता समझता था ।
बहुओं को दयालाल से नफ़रत हो गई थी "जाने कब बुड्ढे की मौत आएगी और सुकून मिलेगा"
छोटी बहू आवाज कानों में सुनाई पड़ती थी दयालाल तड़प उठता था मगर मजबूर था । जाने ईश्वर उसकी कैसी परीक्षा ले रहा था । लोगों के कहने पर सत्संग और पूजा-पाठ कराया जा रहा था ताकि दयालाल को मौत आए । आधे घंटे के लिए दया लाल की आँखें बंद हो गई तो सबको लगा बुड्ढा मर गया जल्दी-जल्दी सबने गंगाजल पिलाया । बहुएं अंदर से खुश थी कि चलो बला टली मगर बाद में फिर से दयालाल को होश आ गया । बहुएं ये देखकर भिनभिनाने लगी ।
दयालाल रात भर भगवान् को याद करके रोता रहा मौत की भीख मांगता रहा ।
पूरी रात कमरे में किसी ने झांका नहीं सुबह से दोपहर हो गई बहुओं ने कमरे में नहीं झांका दोनों बेटे सुबह को ही ऑफिस चले गए थे । जब शाम को बेटे लौटे तो पत्नी से पूछा -"बाबूजी कैसे हैं"
सोने से पहले बड़े बेटे ने दयालाल के कमरे में झांका तो कमरा बदबूदार लगा! देखा बाबूजी सोए पड़े हैं तो उठाया जगाने की कोशिश की जब नहीं जगे तो फौरन डाक्टर को बुलाया । दोनों बहुएं कमरे में आ गयी और कहने लगी "कुछ देर बाद देखना होश में आ जाएंगे"
जब डाक्टर आया तो नब्ज चेक किया और कहने लगा इनकी मौत हो चुकी है । कल रात को ही इनकी मौत हो चुकी थी । ये सुनकर दोनों बहुओं को जैसे कोई लॉटरी लगी हो खुश हो गई । फिर जोर-शोर से रोना शुरू हो गया ।
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