चरित्र पे ऊँगली उठा के
क्या कर पाओगे तुम

चाँद तारों की बात क्यों करती हो . . .


अपनी गटर छाप जवान से
हमे बदनाम नही कर प्पओगे तुम


चरित्र-हिन् कह कर एक औरत को
क्या खुद के भी नज़र में उठ पाओगे तुम


क्या अपनी माँ बहन से
नजरें मिला पाओगे तुम


अपनी गन्दी सोच को
कैसे नज़र-अंदाज कर पाते हो तुम


क्या अपनी घिनोनी सोच के बारे में
सही हो या ग़लत
खुद के दिल से पूछ पाते हो  तुम


क्या अपने घर में भी
ऐसे ही बुरे बन कर रह पाते हो तुम।


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