Read A Poetry - We are Multilingual Publishing Website, Currently Publishing in Sanskrit, Hindi, English, Gujarati, Bengali, Malayalam, Marathi, Tamil, Telugu, Urdu, Punjabi and Counting . . .
आंखों की कहां कोई सुनता है,अब तो लफ़्ज़-ए-गुस्ताख़ी होती हैं। दिल कुछ कहता है,पर लफ़्ज़ कुछ और बयान होते हैं।
पढ़े - दीवानगी का सुरूर - 2 मन की बातों का कोई मोल नहीं रहा,अल्फ़ाज़ सब सुनाने लगें हैं। जीस्मों की भाषा सब बोलने लगें हैं,तभी तो लफ़्ज़-ए-गुस्ताख़ी होने लगी हैं।
पढ़े - दीवानगी का सुरूर - 1 तुम ख़ुद नज़र घुमाके देख लो,सब अपनी मर्ज़ीयों के मुताबिक़ यहां जीता हैं। दिल हों,दिमाग़ हों या फ़िर जिस्म हों,सभी लफ़्ज़-ए-गुस्ताख़ी करते हैं यहां।