मिलने की खवाईश... (भाग - १ )   -   मिलने की खवाईश.... (भाग - २ )   -   मिलने की खवाईश... ( भाग - ३ )   -   मिलने की खावाईश.... ( भाग - ४ )

शिखा और आलोक ने अपने मन की बात तो बता दी.. पर आलोक को हमेशा डर लगता था की कहीं ना कहीं एक बात खटक रही थी कि वो शिखा के घर वालों के साथ धोखा कर रहा है।
          उसे डर था की कहीं शिखा के घरवालों को ये बात पता चल गई तो वो सिर्फ शिखा को ही नहीं पर अपने अच्छे दोस्त को भी खो देगा। मिलने का दौर चलता रहा।
           आलोक ने शिखा के भाई को जो आलोक का दोस्त था उसके कॉलेज में आगे की पढ़ाई मदद की। जैसे जैसे आलोक शिखा की दोस्ती गहरी होने लगी थी तब आलोक के मन में एक ही बात चल रही थी कि वो अपने दोस्त के धोखा दे रहा है।
           एक दिन अचानक आलोक ने शिखा को फोन किया और बोला कि आज से तुम्हारी ओर मेरी दोस्ती ख़तम। में तुम्हारे साथ आज तक मज़ाक कर रहा था...  शिखा मुझे भूल जाना। शिखा ये सब सुनकर आश्चर्य हो गई। शिखा ने रोते हुए ये पूछा की आलोक क्या मुझसे कोई गलती हो गई है..? आलोक ने कहा - " नही.. तुम से कोई गलती नहीं हुई.. पर में तुम्हारे साथ मज़ाक कर रहा था.. तुम भूल जाओ ये सब ओर मुझे भी.. में आज के बाद तुम्हे मेरी शक्ल नहीं दिखेगी।

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             बस इतना ही बोल के आलोक ने फोन काट दिया। शिखा पूरी रात रोती रही। सुबह शिखा की मां ने पूछा की - " शिखा बेटा ये तेरी आंखों को क्या हुआ.? इतनी लाल क्यों है..? " तब शिखा ने बात को टाल दिया और कहा की मां शायद आंख में कुछ चला गया है.. इसलिए लाल हो गई है।
          बहाना बना के शिखा काम पर लग गई। कुछ दिन ऐसे ही निकल गए। आलोक भी वहा शिखा के बारे मै ही सोच रहा था। फिर एक दिन अचानक आलोक को शिखा का फोन आया। वो आलोक को आखरी बार मिलना चाहती थी। आलोक ने हा कहे दिया। फिर से वही जगह पर दोनों मिले... आलोक से बहुत सारी बाते की बाद में दोनों मंदिर भी गए।
           इस दौरान शिखा के भाई के एक दोस्त ने दोनों को साथ में देख लिया। फिर क्या होना था शिखा के भाई को जैसे पता चला उसका घर से बाहर निकल बन्ध करा दिया। फोन भी ले लिया।
            कुछ महीनों में शिखा की शादी भी हो गई। शिखा ने सिर्फ आलोक को ही खोया था... पर आलोक ने ५ लोगो को खोया।

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       " मुझको बताना 
     कैसे दफनाते है उनको

        वो 'ख्वाब' जो 
     दिल में ही मर जाते हैं.."


              समाप्त 

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