जगत बाबू गाँव के इज्ज़तदार आदमी थे।आसपास के कई गाँवों तक इनके नेक-कर्मों के चर्चे थे।इनके जैसा बिरला ही कोई होगा।जो पूरे जगत में भलाई का काम करता हो।लोग तो उनकी तुलना देवताओं से करने लगते थे।वे समझते थे,कोई देवलोक का ही वासी है;जिसने हमलोगों का भला करने के लिए इस लोक में अवतार लिया है।ईश्वर को सदृश देख उनके जीवन का हर क्षण आनंदमय व्यतीत हो रहा है।


गाँव में जगत बाबू के पास २२बीघा सरकारी जमीन थी।उसमें वे गाँव के गरीबों से खेती कराते।बीज,खर्चा,हल ये ही चलाते।जब फसल होती तब आधा अनाज वे ले लेते और आधा उस गरीब परिवार को दे देते।शहर में उनके नाम से कई दुकानें भी चलती थी।सभी दुकानों पर आदमी लगा रखे थे।वे ही सम्भालते।जो कुछ भी मुनाफा होता वे अपने मालिक को दे देते।


इसतरह उनकी सालाना आवक बहुत थी।धन-दौलत की कोई कमी नही थी।पर उनकी कोई संतान नही थी।जिसे वे आगे जाकर अपनी सम्पति सौंप सके।उन्होंने गरीबों को खूब धन बाँटा।कई बार शहर में बड़े-बड़े भोज करवाये।इसी में वे खुश थे।लेकिन उनकी इस सम्पति का वारिस कौन होगा।उनका चित हरदम इसी दिशा में चिंतित रहता।चिंता के इसी भ्रमर में वे दिनों-दिन डूबे जा रहे थे।उनका मन ज्वाला के असीम सागर में गोते लगा रहा था।चाहते हुए भी इसका हल नही निकल रहा था।गहन विचार कर सोचा,अपनी सम्पति को किसी नेक इंसान को दे दूँगा।जो गरीबों, जानवरों पर दया की दृष्टि से देखता हो।पर ऐसा इंसान उनकी नजर में कोई नही आया।


दिन बीतते गए।एक दिन गांव में कोई लड़का भटकता हुआ आया।बड़ी दयनीय हालत थी उसकी।फ़टे कपड़े पहने हुये।शायद काम की तलाश भी आया था।जगत बाबू के घर आ पहुँचा।उस लड़के को मालूम था कि जगत बाबू अत्यंत दयालु प्रकृति के आदमी है।उसने जगत बाबू की नेकियों के बारे में भी सुन रखा था।इसलिए जगत बाबू के घर आया।जगत बाबू हुक्के के खुमार में विलीन थे।एकतरफ वारिस को लेकर चिंतित भी थे।लेकिन ऐसा लगा रहा था मानो उनकी आँखों के सामने जन्नत के ख़ूबसूरत दृश्य हो रहे है।और वे उसका आनंद ले रहे है।सहसा उस लड़के की करुण ध्वनि सुन जगत बाबू की तन्द्रा भंग हो गयी।


जगत बाबू बोले-'कौन हो भाई?','किसलिए आये हो?'
'मालिक कोई काम मिल जाये तो?'(दोनों हाथों को जोड़ वह लड़का बोला)

'क्या काम करोगे?'
जी मालिक,आप जो भी बताइये कर लूँगा।
जगत बाबू ने उस लड़के के स्वर सुने।उसमें एक ऐसी आत्मीयता थी।जिसने अनायस ही जगत बाबू को अपने वश में कर लिया।जगत बाबू ने उसे अपने बगीचे में पानी देने,रखवाली करने के लिया।


'कितने पैसे लोगे?' जगत बाबू बोले।
'आप जो भी दे मालिक'
ठीक है काम पर लग जाओ।काम देखकर पैसे दे दूँगा।
वह लड़का बगीचे का रखरखाव करने लगा।हर काम अच्छे ढंग से करने लगा।एक रोज वह काम ही कर रहा था।जगत बाबू आ गए।उसके काम का मुआयना कर जगत बाबू बहुत प्रसन्न हुए।इससे पहले किसी नोकर ने ऐसा कार्य नही किया था।इसलिए इतने दिनों वे खुद बगीचे में पानी देते थे।बगीचे को इस तरह साफ-सुथरा देख।


जगत बाबू को वह लड़का बहुत मेहनती लगा।एक रोज बाग में एक चिड़िया उड़ नही पा रही थी।शायद उसके देह पर चोट लगी थी।उस लड़के ने चिड़िया को उठाकर कटोरी में पानी और कुछ दाने खिलाये।जगत बाबू घर के बरामदे में बैठे ये सब देख रहे थे।उनकी आँखों में प्रेम की एक अविरल धारा बह उठी।जीवों के प्रति दयाभाव देख उन्हें वह भला इंसान मिल गया था।जिसको उसकी निगाहें जाने कितने दिनों से तलाश रही है।जिसको लेकर वे इतने दिनों से चिंतित थे।दूसरे दिन जल्दी ही उस लड़के के बारे में जाना।

उसके परिवार में कोई नही था।वह अकेला ही है।जगत बाबू ने उस लड़के को अपना बना लिया।आज उनकी सालों की मुराद पूरी हुई,क्योंकि आज अपनी सम्पति को संभालने वाला वारिस मिल गया था।


 प्रकाश परमार

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