पुलिस यहाँ की बिकती है
चंद रूपयों के लिए ,
झूठे अरमानों के लिए ।
नशे की लत के लिए ,
घुँघरू की ताल पे नाचने के लिए ।
हाँ जी हाँ पुलिस यहाँ की बिकती है ।
कभी सरेआम तो,
कभी श्मशान में।
कभी मेले में तो,
कभी अकेले में ।
कभी इज्ज़त के लिए तो,
कभी फजीहत के लिए ।
हाँ जी हाँ पुलिस यहाँ की बिकती है ।
कभी-कभी तो दिन को भी ,
और कभी-कभी रात को भी ।
चेहरे पर रखती चेहरा ,
बेकसूर को बनाती मोहरा ।
झूठ को फैलाती है ,
सच्चाई को छिपाती है ।
हाँ जी हाँ पुलिस यहाँ बिकती है ।
नेताओं की चाटुकारी करना ,
औरों पर झूठे रोब झाड़ना ।
कभी प्रमोशन के लिए तो ,
कभी जेब की डोनेशन के लिए ।
गुंडे मवाली से डरती है ,
नेक जनता को डराती है ।
हां जी हाँ पुलिस यहाँ की बिकती है ।

Radha Yshi

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