लाल सुरा की धार लपट सी कह न इसे देना ज्वाला,


फेिनल मिदरा है, मत इसको कह देना उर का छाला,


ददर् नशा है इस मिदरा का िवगत ःमृितयाँ साकी हैं,


पीड़ा में आनंद िजसे हो, आए मेरी मधुशाला।।१४।







हरिवंश  राय  बच्चन

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