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हम दल-दली जीवन में फस कर यूँ रह गए,
जो पीछे थे हमारे वो आगे निकल गए।
तुम थामने मेरी हाथो को आगे न आ सके,
हम तेरे इंतजार में दल-दल में ही रह गए।
तिनको से लिया जिसने सहारा वो हम से आगे निकल गए।
सहारा समझ कर जिसे पकड़ा था हमने,वो बर्फ की तरह पिघल गए।
ठाना था हमने की मंजिल फतेह करेंगे,
 पर भरोसे के पगडंडियों ने साथ न दिया।
मंजिल छूटी तो गम नही,पर उन्होंने हमारे सपनो को मसल दिया।
सोचा था ऐतवार कर उनपे मैदान जीतेंगे,
पर फरपहराते परिंदे सा मेरा हाल कर दिया। 

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