मानव मुल्य . . .

एक एक करते गए
भरते गए भंडार
मन ना शीतल कर पाए
पाया धन अपार
पाया धन अपार
जो पड़ा रहा बेकार
पाते जो केवल निर्मल मन
ओर शीतलता क़ी धार
ना भागते फिर अर्थ के पीछे
तो हो जाता ऊधार
हो जाता ऊधार
यदि हम ना करते अहंकार
अहंकार है नर्क का द्वार
जो भँवर में नैया देती डाल
मन में मोह ना आने देते
तो हो जाते शीशे से आर पार

उमीद जो ना करते कभी
तो जीवन में आ जाती बहार
जीवन में आ जाती बहार
ना पड़ती फिर समय क़ी मार
हम भी आज कुछ कर गए होते
ना होता दिल दर्द से बेज़ार
ख़ुशीयाँ ख़ुशीयाँ ही होती बेशुमार
सचमुच ग़र ना भागते अर्थ के पीछे
तो हो जाता हमरा भी ऊधार

Rekha Jha

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