किसी गाँव मे एक  हरि नाम का किसान रहता था। हरि के तीन पुत्र थे -- जगदराम, परमजीत और मगन । जगदराम अपने पिता के साथ खेती - बारी करता था। और परमजीत टोपी बेचने का व्यापार करता था। तथा मगन बहुत कामचोर था। वह दिनभर दोस्तों के साथ घुमते रहता । 

        हरि एक दिन जगदराम को कहता है  - “ जगद, मगन को अपने साथ लेकर खेत मे आना”। जगदराम बोला - “ठीक है बाबू जी”।
         थोड़ी देर बाद जगदराम, मगन को खेत मे लेकर आता है। दोनो भाई और उनके पिता मिलकर काम कर रहे थे। कुछ घण्टे बाद  मगन अपने पिता से कहता है - “ बाबू जी, मैं बहुत थक गया हूँ। क्या मैं थोड़ी देर के लिए आराम कर लूँ।”
हरि ने जवाब देते हुए कहा - “जाओ उस पेड़ के नीचे थोड़ी देर आराम कर लो”। 


          लेकिन मगन वहाँ सुखभरी नींद लेने लगता है। जगदराम और उसके पिता हरि पुरा काम खत्म करके आते है तो उन्होंने देखा कि मगन अभी तक सोया हुआ था। मगन को जगाकर कहते हैं , “घर चलो, काम खत्म हो गया।”
          हरि,  मगन को लेकर बहुत चिंतित रहता था। वह हमेशा सोचता कि उसके  गुज़र जाने पर मगन का क्या होगा।
हरि और उसके दोनों बेटे तथा दोनों बहूयें एक दिन आपस में बात -चीत करते हैं। मगन को कल सुबह हमलोग मिलकर समझायेंगे।
           अगले दिन मगन को सभी परिवार वाले समझाते हैं कि तुम कोई काम करो, वरना आगे चलकर तुम्हें कष्ट झेलना पड़ सकता है। फिर भी मगन पर कोई असर ना पड़ा। मगन जैसा - का -तैसा ही रह जाता है। मगन की कामचोरी दिन -प्रति-दिन बढ़ती ही  चली गई। 


           एक दिन हरि बहुत बीमार पड़  जाता है और उसकी मृत्यु हो जाती है। हरि मरते वक्त भी अपने बेटे मगन को बहुत समझा रहे थे। 
           जैसे -जैसे समय बितता गया। मगन के भाईयों ने उसे कहा - “तुम खेती में हाथ बटाओ या फिर अपने बड़े भाई परमजीत के साथ टोपी बेचने का व्यापार करो। नहीं तो अपना कोई कारोबार शुरू कर लो।”
अगर ऐसे ही बैठे रहोगे तो हम तुम्हें अपने साथ नहीं रख सकते”।  
             यह सब सुनकर मगन को गुस्सा आया और वह उसी दिन घर छोड़कर चला गया। जब दूसरे शहर में पहुंचा तब तक मगन को भूख -प्यास से बुरा हाल हो गया था। 
             तब वह पास के होटल में जाता है और उसके मालिक को कहता है, “मुझे बहुत भूख लगी है, क्या मुझे कुछ खाने को मिलेगा?”
होटल के मालिक जबाब देते हुए कहां, यहाँ किसी को खाना मुफ़्त में नहीं दिया जाता है। अगर तुम चाहो तो कुछ दिनों तक बर्तन धोने का काम कर सकते हो क्योंकि रामू अभी गाँव गया है। और तुम्हें खाना भी मिलेगा।”


             मगन ने थोड़ी -सी भी देरी नहीं की और काम को स्वीकार कर लिया। किसी ने ठीक ही कहा है, ‛मरता क्या न करता ’। कई दिनों तक मगन यही काम करता रहा। एक दिन मगन को तेज बुखार हो गया। उस दिन वह काम नहीं कर सका इसलिए उसके मालिक ने उसको कुछ खाने को नहीं दिया। 
              तब जाकर मगन अगले दिन ही अपने घर की ओर चल पड़ता है। उसने जो किया था उसके लिए वह बहुत शर्मिंदा था।
घर पहुँचकर अपने भाइयों से माफ़ी माँगता है और पूरी लगन और मेहनत के साथ अपना काम करने लगता है। 
               उसके जीवन मे काफ़ी बदलाव आया। अब तब तो वह समझ गया था कि हमे अपने परिवार को कभी नहीं ठुकराना चाहिए।


Nitu Kumari

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