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एक गाँव में एक मोहन नाम का एक लड़का अपनी विधवा माँ के साथ रहता था। मोहन 5 वर्ष का था। उसकी माँ कपड़ा👗👚👖 कढ़ाई करती थी। वह दिन भर काम करती थी तब जाकर मुश्किल से 300 रू. कमा पाती थी। और इससे उनकी पालन-पोषण भी ठीक से नहीं चल पाता था।
एक दिन की बात है, गाँव से 4 कोस दूर, मेला लगता है जिसमें Circus और चिड़ियाँ घर तथा बड़ा झुला आता है। जिसे देखने के लिए गाँव के सभी बच्चे अपने माता-पिता के साथ मेला घुमने जा रहे होते है। तब मोहन ने देखा कि उसका दोस्त समीर भी मेला जा रहा था। मोहन, समीर से पूछता है कि, “अरे! दोस्त, कहाँ जा रहे हो। तब समीर बोला, “अरे मोहन! तुम्हें पता नहीं है कि मेला लगा है। और उसमें अनेक प्रकार के चीजें आई है और हम लोग उसे देखने जा रहे हैं।
इतना कहते हुए समीर अपने माता-पिता के साथ चला 🚶👣👣 जाता है। तब मोहन खुशी से दौड़ते हुए अपनी माँ के पास आता है और अपनी माँ से कहता है कि- “माँ, आज मेला चलो ना, गाँव के सभी लोग मेला जा रहे हैं”। तब माँ कहती है, “नहीं, हम नहीं चल सकते”
मोहन- “ पर क्यों? ”
मोहन की माँ,- “क्योंकि अगर हम चले जायेंगे तो आज की कमाई नहीं हो पायेगी। अगर कमाई नहीं हुई तो हम कहाँ से खायेंगे?” मोहन अपनी माँ से जिद्द करने लगता है। मोहन कहता है, “माँ, पैसे दे दीजिए, मैं गाँव वालों के साथ चला जाउंगा। ”
माँ डर रही थी मगर मोहन के जिद्द के आगे विवश हो जाती है और जाने के लिए आज्ञा देती है। मोहन मेला जाने की बात सुनकर बहुत खुश होता है और जाने की तैयारी करने लगता है। जब आधे रास्ता में पहुंचता है तब वह थक जाता है और देखता है कि जब बच्चे थक जा रहे हैं तो उनकी माँ उसे गोद में उठा ले रही है। मोहन निराश होकर बैठ रहा होता है तब एक बंदर🐒 मोहन के सामने आता है और कहता है कि- “मुझे बहुत जोर से भूख लगी है। क्या मुझे तुम कुछ खाने को दे सकते हो?”
मोहन कहता है कि-“ठीक है, मैं तुम्हें खिला दूंगा लेकिन तुमको मुझे मेला तक पहुंचाना पड़ेगा। बंदर भी मोहन की बातों से सहमत हो जाता है और दोनों मेले की ओर चल पड़ते हैं। उन दोनों में मित्रता बड़ती चली जाती है। दोनों मेला पहुंच कर ख़ूब मस्ती करते हैं। रंग-बिरंगी मिठाइयां खाते है और झूले पर झूलते हैं।
शाम होते ही दोनों घर की ओर लौटने लगते हैं। बात-चीत करने के दौरान मोहन को मालूम होता है कि उस बंदर का और कोई नहीं है। वह अकेला है। तब मोहन उस बंदर को भी अपने घर 🏡 लाता है। मोहन जब घर पहुंचता है तो उसकी माँ दौड़ती हुई आती है और मोहन को गले लगाती है। फिर मोहन से उस बंदर के बारे में पूछने लगती है तब जो कुछ भी हुआ था, मोहन विस्तार से अपनी माँ को बता देता है। सारी बात सुनकर, माँ, बंदर को खाना खिलाती है।
जब सात-आठ दिन बीतता है तो बंदर से घर की स्थिति देखी नहीं जाती इसलिए उसने कमाने की ठानता है। और माँ से जाकर कहता है कि - “अगर कोई रिक्शा हो तो मैं कल से कमाना चाहता हूं।” पहले तो माँ मना कर देती है कि तुमसे नहीं हो पाएगा। लेकिन बंदर जिद्द करने लगता है तो माँ उसे एक रिक्शा दिला देती है।
उसके अगले दिन से ही वो बंदर कमाना शुरू कर देता है और रोज़ दो-तीन सौ रूपये लाकर माँ को देता है तो माँ बहुत खुश होती है। तब बंदर माँ से मोहन को पढ़ाने की बात करता है। यह बात सुनकर मोहन और उसकी माँ, दोनों खुशी से गद-गद हो जाते हैं। तो माँ कहती है, “ठीक है। कल से मोहन को स्कूल भेज देंगे।
बंदर रोज़ मोहन को उसके स्कूल तक छोड़ देता और शाम होते ही बुलाने जाता। इसी प्रकार बंदर, मोहन और उसकी माँ से घुल-मिल जाता है और खुशहाली से अपने जीवन बिताने लगता है।
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