छोड़ दिये . . .

चले थे साथ मिलकर
किसी मंजिल की तरफ।
बीच में ही साथ छोड़कर
निकल लिए और के साथ।
अब किस पर यकीन करें
इस जमाने में साथ के लिए।

हर तरफ स्वार्थ ही स्वार्थ
हमे आज कल दिखता है।।
मिला था जब दिल हमसे
तो कसमें खाते थे तुम।
सात जन्मों तक
एकदूजे का साथ निभाने की।

फिर ऐसा क्या हो गया
जो गरीब का साथ छोड़ दिया।
और यश आराम के लिए 
और का हाथ थाम लिए।।
महत्वकांक्षी लोग किसी
एक के हो नहीं सकते।

आज ये है तो कल कोई
और भी इनका हो सकता है।
क्योंकि मोहब्बत तो
इनके लिए एक खिलौना है।
और टूटते ही उसे बदल 
ने की फिदरत होती है।।

न कोई मंजिल न लक्ष्य 
ऐसे लोगो का होता है।
बस अपनी जवानी और
रूप से घयाल करके।
प्यार करने वालो का प्यार  
पर से विश्वास उठवा देते है।

और ऐसे लोग न जीते है
और न ही मर पाते है।।

Sanjay Jain

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