कलम का कमाल . . .

लिखता मैं आ रहा हूँ
गीत मिलन के। 
रुकती नहीं कलम मेरी
लिखने को नए गीत ।

क्या क्या मैं लिख चुका
मुझको ही नहीं पता। 
कब तक लिखना है,
ये भी नहीं पता।
लिखता में आ रहा.....।।

कभी लिखा श्रृंगार पर,
कभी लिखा इतिहास पर ।
और कभी लिख दिया, 
आधुनिक समाज पर ।
फिरभी सुधार नहीं आया
लोगों की सोच में ।।
लिखता में आ रहा...।।

लिखते लिखते थक गया
सोच बदलने वाली बातें ।
फिर नहीं बदल पाया
मैं विचार लोगों के।
 
इसे ज्यादा और क्या 
कर सकता है रचनाकार।। 
लिखता हूँ सही बातें,
मैं अपने गीतों में...
मैं अपने गीतों में......।।


Sanjay Jain

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