मोक्ष पथ के सूत्र . . .

दर-दर का मारा भी
प्रभु भक्ति से बन गया।
सभी की आंखों का तारा।
और प्रभु भक्त कहलाया।।
सवाल यह नहीं है कि
भगवान है या नहीं ?
अपितु सवाल यह है कि
तुम्हारे हृदय में भगवान को।
विराजमान के लिये क्या
कुछ स्थान है या नहीं।।
दुराग्रह एवं आलस्य से मूर्खता
तथा दुर्भाग्य का जन्म होता है।
गुरुभक्ति और प्रभुभक्ति से
शुभफल का उदय होता है।
तभी घर में सुखशांति और
धर्म की प्रभावना बहती है।
और घर का वातावरण फिर
स्वर्ग जैसा बन जाता है।।
सीखना कभी न छोड़िये,
क्योंकि जिंदगी में हमेशा।
परीक्षा देना पड़ती है
इसलिए स्वाध्यावी बने।
विध्दमानों के प्रवचन सुने
और नियमित मंदिर जाये।
आपका पुण्य उदय बढ़ेगा
और जीवन सफल बनेगा।
जो पाप से संचित किया जाता है
वह परिग्रह है और।
जो पुण्योदय से प्राप्त होता है
वह सम्पदा है।
इसलिए पाप से बचे और
पुण्य के लिए परिग्रह को त्यागे।
और दया दान धर्म के पथ को
अपने जीवन के लिए चुने।।
भय औऱ आशक्ति का
त्याग करने पर ही।
सच्चे सुख की प्राप्ति होती है।
इसलिए अपनी शक्ति को
यहाँ वहाँ पर बर्बाद न करे।
और अपनी शक्ति का आप
सही जगह पर उपयोग करें।।
जो मूर्खों को चुप करा दे और
विद्वानों की चुप्पी खुलवा दे।
उसे हम आप और समाज
बुद्धिमान व्यक्ति कहते हैं।
यह तभी संभव हो सकता है
जब आपका ज्ञान अच्छा होगा।
इसलिए ग्रंथो का स्वाध्याय
धर्य और गंभीरता से करे।।
पूर्वजन्म के अच्छे कर्मो के कारण
आपको मनुष्य पर्याय मिला है।
इसलिए इसका सदुपयोग करें
और ब्रा.भैया संदीप "सरल" जी के
चिंतन सूत्रो का मनन करें।
जिसे शब्दो की माला में
संजय ने एक साथ पोया है।
जो मोक्ष पथ को पाने के लिए

श्रुत आराधना, श्रुतधाम से जोड़ने का प्रयास है।
जिससे आपका मानव  जीवन सफल बन जाये।।

 
Sanjay Jain

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