वो भी क्या दिन थे . . .

वो भी क्या दिन थे
जों कल बचपन था
आज बीता हुआ कल हो गया

कल जो झुठ बोले थे
आज वो सब सच हो गये
ना चाहते हुए भी हम कुछ और हो गये

कल जो खेल खेला था
आज उसे भुल हम गए
जिंदगी की कशमकश में कुछ ऐसे झुल गए

ना पढ़ाई की चिंता थी
ना फेल होने का डर कोई
बस मस्ती में पल वो जिये गए

वो जो कल बचपन था
जिसमें हंसे हम गए
आज लाखों गमों को छुपाये हम गए

बचपन की बारिश थी
काग़ज़ की नाव से खेले हम गए
बड़े होते होते जों आंसुओं में बह गए

कल जिस पर हमें गुमान था
वो बिखरकर आज
मुरझाए फूल हम हो गए

कल जो बचपन था
आज हम उसे भुल गए
आज नए शहर में हम कुछ और हो गए


Pradeep Chauhan

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