अब हम भी कुछ जरा बेहतर लिखते है,
तभी तो सोने को पीतल, मोम को पत्थर लिखते है।

फरेब, मक्कारी, साजिश होती रहती है,
तभी तो हम हाथो में उसके खंजर लिखते है।

कतरे को दरिया कहे है दुनियां सारी,
रब की रज़ा को हम समुंद्र लिखते है।

मुफलिसी ने समेटे रखा मुझको दायरो में,
जख्मों को कुरेद के ही बाते बेहतर लिखते है।

आलम ये मेमना बन के जी रहे लोग,
जहरीली सियासत को हम अजगर लिखते है।

दर्द जो लिखता हूं गरीबों के पढ़ के खुश है सब,
जालिम दुनियां कहती है, हम तपीकर लिखते है।

शाहरुख़ छोड़ो ना उम्मीद ये तो कुफ्र है,
कागजों पे दर्द हम बहुत सहेजकर लिखते है।

Shahrukh Moin

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