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Sanjay Jain
घर गृहस्थी समझा . . .
Chandrashekhar Poddar
घर
गृहस्थी
समझा . . .
न
गम
का
अब
साया
है
,
न
खुशी
का
माहौल
है।
चारो
तरफ
बस
एक
,
घना
सा
सन्नाटा
है।
जो
न
कुछ
कहता
है
,
और
न
कुछ
सुनता
है।
बस
दूर
रहने
का
,
इशारा
सबको
करता
है।।
हुआ
परिवर्तन
जीवन
में
,
इस
कोरोना
काल
में।
बदल
दिए
विचारों
को
,
उन
रूड़ी
वादियों
के।
जो
घरकी
महिलाओं
को
,
काम
की
मशीन
समझते
थे।
और
घरके
कामो
से
सदा
,
अपना
मुँह
मोड़ते
थे।।
घर
में
इतने
दिन
रहकर
,
समझ
आ
गये
घरके
काम।
घर
की
महिलाओं
को
कितना
होता
है
काम।
जो
समयानुसार
करती
है
,
और
सबको
खुश
रखती
है।
पुरुषवर्ग
एकही
काम
करते
है
,
और
उसी
पर
अकड़ते
है।।
देखकर
पत्नी
की
हालत
,
खुद
शर्मिदा
होने
लगा।
और
बटाकर
कामों
में
हाथ
,
पतिधर्म
निभाना
शुरू
किया।
और
पत्नी
का
मुरझाया
चेहरा
,
कमल
जैसा
खिल
उठा।
और
मुझे
सच्चे
अर्थों
में
,
घरगृहस्थी
समझ
आ
गया।।
Sanjay Jain
Chandrashekhar Poddar
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