मन में रहती है हमेशा सबके
छुपी कोई एक आकाँशा


अपनी अपनी उम्र के अनुसार
हम केवल ओर केवल


पाना चाहे सबका प्यार
कुछ ऐसे भी है जिन्हें चाहिए


बस  पैसा बेशुमार
कुछ लोग संतुष्ट हो जाते है


पाकर बंगला बैंक बैलेन्स व कार
कुछ जो ईश्वर से नेहा है लगाते


उन्हें लगती है दुनिया बेकार
कुछ मस्त हो जाते है


ओर भूल जाते है सारे ग़म
पाकर अपने प्यारे हमदम


मेरी भी है एक आकाँशा
पाँऊ मै सदा प्यार सम्मान


ना सुनना चाहूँ मै कड़वी बात
तीखी वाणी करती है मुझपर आघात


सदा प्रभु रखना मेरा मान
देना मुझे विद्या ज्ञान का दान


पर दाता मुझे ना देना तुम अभिमान
कभी मेरे मन में आता


क्यूँ सदा मन पाने की चाहता
क्यूँ नहीं है कुछ देने की चाह


क्या है आख़ीर मन की राह
कभी करते दूसरों क़ी परवाह


Rekha Jha

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