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आइये हम सबसे पहले जानते हैं कि आतंकवाद पैदा कैसे होते हैं, आतंकवाद का दूसरा नाम है ज़ाहिल(अनपढ़) आतकंवाद वही लोग बनते है जिनको जरा सा भी इल्म(नॉलेज) नही होता है आतंकवाद खुद को तो अल्लाह का बन्दा कहते हैं,लेकिन उनको मालूम नही की वह अल्लाह के बंदे नही बल्कि अल्लाह के गुनहगार हैं,किसी इंसान को मारते हैं तो कहते हैं अल्लाह खुश होगा, खुद के शरीर पे बम बांध कर के भीड़ भाड़ वाली जगहों पे जा के फट जाते हैं और कहते हैं ज़नत मिलेगी,लेकिन इन ज़ाहिल आतंकवादियों को यह पता नही की खुदा मुहब्बत फैलाने और खुदा की ईबादत करने पर खुदा खुश होता है, और ज़नत नेकी करने और लोगो की मदद करने से मिलती है,किसी मासूम को जान से मार देने से खुदा ख़ुश नही होता और ज़नत नही मिलती, और कोई भी धर्म मजहब खून खड़ाबा करना नही सिखाता बल्कि अमन चैन सुकून और मुहब्बत से जीना सीखता है,लोग आतंकवाद को धर्म मजहब से जोड़ते हैं लेकिन सच यह है कि आतंकवाद का कोई धर्म मजहब नही होता,आतंकवाद खुद एक अलग धर्म मजहब है जिसका मकसद सिर्फ़ नफरत फैलाना और खून खराबा करना है,
आतंकवाद मानवता के लिए एक बड़ा खतरा है, आतंकवाद के आतंक से पूरी दुनिया दहशत में है,आतंकवाद ने कई घर उजाड़े हैं कई माँ के कोख उजाड़े हैं कई बेटों के सर से बाप का साया छीन लिया है,कई बहनों को विधवा किया है,,
आतंकवाद के आतंक ने दाढ़ी टोपी को इतना बदनाम कर दिया है कि अगर कहीं आतंकी हमला होता है तो हमारे मुस्लिम भाई जो दाढ़ी टोपी लगाते है वह डर जाते हैं सहम जाते हैं कि कहीं मुझे आतंकवाद के नाम पे जेल में ना डाल दिया जाए और ऐसा बेकुसूर मुस्लिमों के साथ हो भी चुका है आतंकवादियों की सज़ा बेकसूर मुस्लिमो को मिलती है,
और इस आतंकवाद के बढ़ते हुए ख़तरे को रोकने के लिए आतंकवाद को जड़ से ख़त्म करना होगा,आतंकवाद का नाम ओ निसान मिटना होगा!!
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