आज नीति का मन बहुत व्याकुल था,सवेरे से ही बड़े बेटे शुभम की बहुत याद आ रही थी।वह लखनऊ की tcs कम्पनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं।कल रात डेढ़ बजे तक उससे फोन पर बात करती रही थी।यह रोज की दिनचर्या बन गयी थी।दिन भर बेटे को काम से फुर्सत ही नहीं मिलती।बेटे को पढ़ाई के कारण रात को दो ,तीन बजे सोने की आदत पड़ चुकी थी,चाहे काम करे या लेपटॉप पर कोई मूवी ही देखे।फिर सुबह दस बजे से पहले वह उठ नहीं पाता इधर लोकडौन के कारण कुक और महरी की भी छुट्टी कर रखी थी।सब काम अपने हाथों से करना पड़ता ,फिर कम्पनी का दस ग्यारह घण्टे का कठिन काम,।बहुत थक जाता हैं,, शुभम और नीति चाह कर भी बेटे की कोई मदद नहीं कर पा रही थी।नीति स्वयम व्याख्याता थी तो मनो विज्ञान समझती थी।बेटे की दिनचर्या  सुधारने को उसे समझाती तो बेटा उस पर ही झल्ला जाता।नीति करे भी तो क्या करे?बेटे के कठोर परिश्रम को समझती थीऔर कलेजे मेंहूक भी उठती थी,,मगर उसकी मदद करने में असहाय थी।
      शुभम अब उससे मन की सारी बातें करता था,,हँसी मजाक भी करता,,क्योंकि दिन भर किसी से बात करने को भी तरस जाता था।हालांकि चार दोस्तों के साथ फ्लैट लिया था,,पर वे सब भी उसी की तरह ही अति व्यस्त थे।
कभी कभी शुभम शिकायत भी करता,,अपने बचपन के दिनों को याद कर,,जब मैं बहुत व्यस्त थी और उसे मनचाहा वक्त नहीं दे पाती थी।नीति के मन में कभी कभी कसक उठती थी कि बेटे को भरपूर वक्त नहीं दे पाती मगर नौकरी ,घर और ट्यूशन की जिम्मेदारी के कारण मजबूर थी।अब लोकडौन के कारण वह फुरसत में थी और बेटे से जीभर बातें कर पा रही थी।बरसों से जो दूरी थी मनो में,उसे वहपाट चुकी थी।हालांकि सुबह देर से उठने के कारण उसके काम काज भी थोड़े अस्त व्यस्त हो जाते थे,,पर बेटे की खातिर वह खुश थी।
समय के इस बदलाव को जीभर महसूस कर वह बहुत खुश थी।इधर सास ससुर भी उससे बहुत  खुश थे।उनका मन पसन्द खाना बना कर खिलाना,जूस,सूप और सलाद बना कर मनुहार कर खिलाना अब नीति को सुकून दे  रहा था।पतिजी भी उसके शांत,कोमल व्यवहार से मुग्ध होकर उसके इर्द गिर्द ही घूमते रहते थे।घर के काम काज में मदद करने के साथ ही कभी कभी नमकीन बना कर भी खिलाते थे।वह भी कभी माँ के ,कभी पति के पाँव दबाती, कभी उनको हेड मसाज देती।घर पर रहने,पौष्टिक भोजन करने और खुश रहने से नीति के चेहरे की रंगत भी सँवर गयी थी....
इधर भागवत पाठ भी कर रही थी रोज दो घण्टे,माँ पापा भी पास बैठ पाठ सुनते थे।घर का माहौल ख़ुश गवार हो गया था।ऑनलाइन क्लास के दौरान पतिजी घर का काम सम्भाल लेते थे।
     रिश्तों में मिठास आ गयी थी।सब साथ मिल बैठ कर सुख दुख की बातें भी करते थे।एक दूसरे को वक्त देकर मन की बातों को समझने का भरपूर मौका मिला था।इधर ऑनलाइन jk की क्लासों से धन की आवक भी भरपूर थी।जो नीति बेटे को देर से उठने और काम में लापरवाही के कारण अक्सर डाँटती रहती थी,,वही अब बेटे की  मन की हालत समझ उसका पक्ष लेने लगी।बस ,,मन में यही कसक थी कि काश,,बेटे को बचपन में ही वक्त दे समझ लिया  होता।
बदलाव की सुखद बयार से नीति अभिभूत थी।परिवार के सदस्यों से मन से जुड़ चुकी थी।ऑनलाइन काम करना सीख चुकी थी।रिश्तों की ऊष्मा से उसकी गृहस्थी महक उठी थी।कोरोना की महामारी का सामना करने को अब वह परिवार सहित तैयार थी।

Neelam Vyas

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