आखिर क्यों तेरे बिन कुछ कमी है
आखिर क्यों तू ही मेरी हर खुशी है

आखिर क्यों तेरे लिए मेरी धड़कन थमी है
आखिर क्यों एक अजीब सी खामोशी है

क्यों नींद है पर चैन नहीं
क्यों तू दूर है फिर भी दूर नहीं

क्यों तुमसे मिलने का इंतजार है
आखिर क्यों आंखों में सिर्फ तुम्हारी ही ख्वाब है

क्यों तेरे जबरदस्ती में भी अजीब सी मस्ती है
आखिर क्यों तुमसे बात करने में मिलती खुशी है

क्यों तुम से बात करने के इंतजार में लगता है सदियां बीत गई
आखिर क्यों लगता है इस रिश्ते का नाम न सिर्फ दोस्ती है

क्यों मुझे मोह लिया तेरी आंखों ने
आखिर क्यों मुझे रुला दिया तेरी मजाक भरी बातों ने

क्यों मुझे रातों को नींद नहीं होती
आखिर क्यों तुझे फोटो में देखे बिन सुकून नहीं होती

आखिर क्यों तुम आम होते हुए भी खास हो
क्यों तुम दूर होते हुए भी पास हो

आखिर क्यों मैं हर पल चाहता हूं तेरा साथ
क्यों मैं ऐसा बनना चाहता हूं कि मांग सकूं तेरा हाथ

आखिर क्यों तुमको मैं हर गम से आजाद करना चाहता हूं
तेरे साथी क्यों इस दुनिया पर राज करना चाहता हूं
आखिर क्यों . . . . . .

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