पुरी रात मै रोई 
पुरी रात वो सोया
बस कुछ कदम की दुरी थी
न मै गई न वो आया
कलमे इश्क की पढ़ता रहा वो 
मै खुद मे ही घुटती रही
बस आँखो से मिलना था
न मै ही शरमाई न
उसने ही देखा
बडी नापाक है तु मोहब्बत
औ मेरी अहले दिल तू सुन ले
न गुफ्तगू करने मै गई न
 वो आया
जमाने और जिममेदारीयो का 
पेहरा था मुझ पर
बेटी होने का भी कुदरत का 
दावा मुझ पर
पर नवावे सलतनत सुन ले
हाथ थामने न तेरी
सलतनत आई 
न तु आया
जिग़र के घाव गहरे है
रश्मि
मरहमे इश्क लगाने 
न मै रूकी न तु आया
रश्मि (पहली किरण)

Rasshmi

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