ये ख्यालों का दुनिया भी  बड़ा  बेशर्म होता है  जनाब ! जब देखो मुँह उठाकर जहऩ में अपनी ही धुनी रमाने लगता है। कुछ बोलने-सुनने-देखने का कोई  गुंजाइश  ही नहीं छोड़ता।और जब तक समझ अाये........।चौथी मंजिल के टू बीएचके फ्लैट  में पहुँच चुका था।

दरवाज़े  को जोड़  से अपनी  पैरों  से मारती  हुई  अंदर से बंद कर देती है। दरवाज़े  से बेडरूम  तक पहुँचते-पहुँचते "अाई लव यू" और "किसों" का बर्सात शुरू  हो चुका था। अंधेरी  रात में दूर  कहीं  टिमटिमाती हुई रौशनी की एक किरण जो रूद्र  के जीवन  के अंधेरे  को चीरने की तैयारी में लगा हुआ था।

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अरे-रे ये क्या?? जिसका अभी  तक नाम भी नहीं  जान पाय था। कभी  कोई  बात भी नहीं  हो पाई थी, वो ये क्या कर रही  है??? .........बिस्तर  पर धकेलते हुए, भूखी  शेरनी  की तरह टूट  पड़ी थी रूद्र  पे।कुछ समझने  कि स्थिति  में नहीं  रह गया था।  उसके लिये  प्यार  तो एक पूजा था जिसे दिल से करना  था। ना कि हवस और  देह का भूख॥

"हे... हे... हे!! व्हाट अार यू डुइंग"?? रुद्र  झटकते हुए  उस से बोला।
पुनः  अपनी  अागोश में खिंच  रूद्र  के मखमली गालों  पे बिल्ली  के चंगुल समान नाखूनों  को फेरने लगती है। जलती हुई ज्वालामुखी का लावा अपनी तेज प्रवाह में फट कर बहने की तैयारी  कर चुका  था।
"इतनी जल्दी  भी क्या है ये सब तो शादी  के बाद........."॥ बात पूरी  भी  नहीं हुई थी रूद्र की कि 
धकेलती हुई  बिस्तर  से निचे गिरा देती है।

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"व्हाट"?? "शादी "?? खिंझती हुई  बोली।

"हाँ !! डु यू लव मी?.....न"??? रूद्र  ने पुछा।

"लव ! माई फुट...... !! तू मेरे को फास्ट लगा इसलिए तेरे को साथ ले अाई, ऑनली फोर वन नाइट  स्टैंड"। रूद्र  तो बस हक्का-बक्का देखे ही जा रहा था। और  वो बोलती  ही जा रही थी - "एण्ड नाव गेट ऑउट"।

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बेचारा रूद्र  हिंदी सिनेमा के धुन की तरह सप्ताहिक परिवर्तन को स्वीकारते हुए खुद  को तसल्ली देता हुआ चल देता है। "अाखिर अंग्रेज़ी बीट पर नाचने वाली  से और उम्मीद  ही क्या किया जा सकता है? ये कोई गुलज़ार की रचना और नौसाद का धुन थोड़े  ही न है जो वर्षों प्यार  का एहसास कराता  रहे। ये तो अंग्रेज़ी बीट्स  वाला सफर था जो प्रत्येक  शुक्रवार को बदलना ही है"।

स्वरचित व अप्रकाशित  रचना


Rajan Singh

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