मैं नया नया ऑफिस ज्वाइन किया ही था ।। मेरे पापा एक बहुत बड़े बिजनेसमैन थे । अमेरिका से एमबीए की पढाई करके लौटा था । पापा के बिजनेस को और बढाना चाहता था। इसलिए जब इंडिया आया तो पापा के कहने पर ऑफिस का कार्यभार संभाल लिया ।
मेरे पापा विभूति रस्तोगी थे मां नैना रस्तोगी और एक बहन थी साक्षी रस्तोगी ।

मेरी बहन मुझसे बड़ी थी जो एक जज थी उसकी शादी भी एक जज से ही हुई थी। तीन साल बाद मैं अमेरिका से लौटा था इसलिए दीदी ने अपनी ससुराल बुलाया था । मैं भी अपने भांजा भांजी से मिलना चाहता था इसलिए चार दिन बाद ही दीदी के ससुराल दिल्ली आ गया । कनाट प्लेस में दीदी का एक शानदार बंगला था ।
वहीं पास ही एक पार्क था रोज मैं शाम को पार्क जाता था । आज भी मैं में घूमने पार्क आया था ।
क्योंकि मुझे पार्क में आने के लिए एक वजह मिल गयी थी । मैं बेंच पर बैठे-बैठे उसका इन्तज़ार कर रहा था आज वह काफ़ी लेट से आई थी ।

तीन-चार दिनों से लगातार मैं केवल उसी को देखने आता था । चलती-फिरती वह कोई मोम की गुड़िया लगती थी । इतनी मासूमियत कि किसी का भी दिल उस पर आ जाए । उसकी आँखों से तो केवल प्यार टपकता था ऐसा लगता था कि जैसे उसको कभी गुस्सा आता भी नहीं होगा ।

वह लड़की जिसके दीदार के लिए मैं घंटों पार्क में बैठकर गुजार देता था ।

सादगी ऐसी कि दिल चाहता था उसपर यकीन करूं ।
वादा है आपसे - भाग - 1   ---   वादा है आपसे - भाग - 2   ---   वादा है आपसे - भाग - 3   ---   वादा है आपसे - भाग - 4   ---   वादा है आपसे - भाग - 5

वह दिन को रात भी बोले तो रात मैं कह दूं ।

अब और कितने उपमाओं से नवाजूं ।। उसके इश्क़ में मैं पूरी तरह गिरफ्तार हो गया था ।

वह लड़की हमेशा अपनी एक सहेली के साथ पार्क आती थी । कुछ देर घूमती बातें करती फिर चली जाती ।

दीदी ने मेरा चुलबुलापन देखकर शायद कुछ भांप लिया हो तभी जीजू के साथ मिलकर खूब कमेंट कसती मुझपर ।

"क्या साले साहब अमेरिका से किसी गोरी मेम को ले आते"
 मेरे जीजू ने हंसकर कहा 
"जीजू कोई पसंद आती तब तो ले आता अब तक तो कोई भी पसंद नहीं आयी थी"

"ओ बबुआ मुझे तो लगता है इश्क़ के मरीज हो गए हो अब बता भी दो वो अमेरिकन है या इंडियन"
दीदी ने सवाल दागा । 
मगर मैंने अंजान बनने का नाटक किया । मैं खाना खाकर बेड पर आ गया ।

मैंने खूबसूरत लड़कियों को कभी नहीं देखा हो ऐसी कोई बात नहीं थी । कॉलेज, यूनिवर्सिटी और अमेरिका में एक से एक हसीं लड़कियों को देखा था ।

बहुत लड़कियाँ मेरे आसपास मँडराती रहती थी ।मगर मैंने कभी किसी कोई घास नहीं डाला ।
  
दिल्ली आए हुए एक सप्ताह होने को था । पापा ने फोन करके आने को कहा तो मैंने तबियत खराब होने का बहाना करके कहा -
"परसों आऊंगा"
क्योंकि जाने से पहले मैं उस लड़की के बारे में जानना चाहता था । ताकि उससे संपर्क रख सकूं ।
सुबह उठा तो दीदी ने कहा इस बार मैं भी तेरे साथ चलूंगी घर । मैंनें कहा नेकी कर और पूछ पूछ जल्दी से सामान पैक कर लो दीदी ।
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दीदी फिर सामान पैक करने में बिजी हो गई ।

भांजा भांजी खुश नजर आ रहे थे ।

शाम के ठीक पांच बजे मैं पार्क में पहुँच कर उस लड़की का वेट करने लगा । इन्तज़ार करते-करते बोर हो गया था दिल ये सोचकर दहल रहा था कि अगर वह नहीं आई तो, फिर ईश्वर से दुआ मांगने लगा कि काश वह सामने आ जाए । > वादा है आपसे - भाग - 2

Radha Yshi

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