हे! प्रेम पथिक जीवन #पथ में,
ये आस-दीप जलने देना,
जब जी चाहे पलकें मूंदूँ,
और तुमको आमंत्रित कर लूँ।
जब भी आना कहके आना,
बिन आहट तुम मत आ जाना,
सादा सी रह न जाऊं कहीं,
खुद को मैं जरा सज्जित कर लूँ।
सिंदूर और बिंदिया झुमके,
अधरों पे तुम्हारा मृदु स्पर्श,
आँखों में काजल के स्वरूप,
प्रिय प्यार तेरा पुष्पित कर लूँ।
बाहों का हार गले में और,
सांसों का स्पंदन तुझसे,
पावों में पायल शर्म की हो,
धुन घुँघरू की नियंत्रित कर लूँ।
तुम हो अतीत तुम वर्तमान,
तुम ही भविष्य का स्वप्न सुखद,
तुमको समुद्र और खुद को मैं,
लहरों में परिवर्तित कर लूँ।
जब वक्त मिले तन्हाई में,
पल भर ही सही आ जाना तुम,
सच तो मेरी किस्मत में नहीं,
सपनों को एकत्रित कर लूँ।
संग-संग रहते ज्यों परछायी,
सुख-दुःख के सच्चे साथी तुम,
तुम तार हो मन की वीणा के,
जीवन तुमसे झंकृत कर लूँ।


--- सुमन सिंह
(अयोध्या)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

इस पोस्ट पर साझा करें

| Designed by Techie Desk