Domestic Violence

घरेलू हिंसा . . .

बिखरे हुए थे बाल उसके
काजल में फिर आज कालिका छाई थी
हैं लाल बहुत ही आंखें उसकी
क्या रात उसने फिर मार खाई थी?
सब सहकर भी मुस्कुरा देती है वो
मानो रिश्तों की अर्थी पे लेती है वो
न कह सकती है दुख दर्द को भी
ये कैसी बेड़ियों में जकड़ी है वो
हाँ ये बेटी है जाहिल समाज की
जो वह बगावत करने से डरती है
क्या कहेंगे फिर ये लोग उसे
गर वो शिकायत, बगावत करती है
सब हसंगे लोग उस पर
बस यही सोच कर वो हर दम मरती है
हैं लाल बहुत ही आंखें उसकी
क्या रात उसने फिर मार खाई है
ये बेड़ियों हैं उसके अपने समाज की
क्या कहेंगे लोग उसे क्यों चुप रहती है
क्या उसकी कोई औकात नहीं
आगे आए क्या कर सकती प्रतिघात नहीं?
हैं लाल बहुत ही आंखें उसकी
क्या रात उसने फिर मार खाई थी?
यह बेड़ियों हैं उसकी मायके की
क्या कहेंगे लोग कैसे संस्कार दिए
चुप रहना था, सब सहना था
चाहे फिर किसी ने घाओ दिए।
हैं लाल बहुत ही आंखें उसकी
क्या रात उसने फिर मार खाई थी?
ये बेड़ियों है उसके अपनी सन्तान की
क्या कहेंगे लोग बच्चे बिखर गए
क्या होता गर खा लेती थोड़ी मार
अब देखो घर टूट गया, बच्चे कैसी सहम गए
हैं लाल बहुत ही आंखें उसकी
क्या रात उसने फिर मार खाई थी?
बस बहुत हुआ अब बेड़ियों को तोड़ना होगा
कोई ना कोई हल अब खोजना होगा
या बंद करो तुम हिंसा ये
या मुझे चंडी बनना होगा
था अंत किया मां काली ने
जब महिषासुर शुंभ निशुंभ का भी
तुम पुरुष रूप में दानव हो
ये सब तुम्हें अब समझना होगा
रात होती है जब किसी घर में
कोई चीख चिल्लाती है
कांप जाती है रूह मेरी
क्या तुम्हें तरस नहीं आता है?
रुको अब जाने दो
मत मारो मुझे यही दुखाई आती है
कांप जाती है रूह मेरी
क्या तुम्हे शराम नहीं आती है?
हैं लाल बहुत ही आंखें उसकी
क्या रात उसने फिर मार खाई है?

Rekha Jha

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