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रिश्तें . . .


कभी रिश्ते बनाते है
कभी उनको निभाते है।
कभी रिश्ते बचाते है
कभी खुदको बचाते है।

इन दोनों कर चक्कर में
अपनो को खो देते है।
फिर न रिश्ते रहते है
और न अपने रहते है।।

जो रिश्तों को दिलो में
संभलकर खुद रखते है।
और लोगों को रिश्तों के
सदा उदाहरण देते है।

और रिश्तें क्या होते है
परिभाषा इसकी बताते है।
और रिश्तों के द्वारा ही
घर परिवार बनाते है।।

कई माप दण्ड होते है
हमारे रिश्तों के लोगों।
कही माँ बाप का तो
कही बहिन भाई का।

किसी किसीके तो पड़ोसी
इनसे भी करीब होते है।
जो सुखदुख में पहले
अपना रिश्ता निभाते है।।

रिश्तों का अर्थ स्नेह और
मैत्री भाव से समझाते है।
और रिश्तों की खातिर
समान भाव रखते है।

और अपने रिश्तों को
अमर करके जाते है।
और खुद भी अमर
सदा के लिए हो जाते है।।

Sanjay Jain

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