कलम के जादूगर . . .

तुम जन्मे एक साधारण से परिवार में,
वाराणसी के लमही ग्राम में।

बचपन में माता को खोया,
विमाता ने तुम्हारा बाल विवाह करवाया।

था जीवन संघर्षों से भरा,
तुमने न कभी धैर्य खोया।

पढ़ने की ऐसी थी ललक तुममें,
13 साल की उम्र में 'तिलिस्म ए होशरूबा ' पढ़ डाला।

तुम्हारी रचना से पूरी अंग्रेजी सत्ता थर्राई ,
देशप्रेम से परिपूर्ण सोजेवतन की प्रतियां जब्त कर ली।

न लिखने की तुम्हे चेतवनी भी मिली,
तुम कहाँ थे मानने वाले, नाम बदल और भी ढ़ेरो रचनाएं लिख डाली।

थी हिंदी लड़खड़ाती हुई,
तुमने अपने कलम की बैशाखी पकड़ाई।

हर क्षेत्र में अग्रसर ,बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे तुम,
धन से गरीब ,पर शब्दो से अमीर थे तुम।

कलम तुम्हारी कभी बिकी नही,
किसी के आगे झुकी नही,

तुम कलम के सिपाही ,सदा सत्य लिखते रहे,
तुम कलम के मजदूर ,सदा परिश्रम करते रहे।

अपनी रचनाओं से हमें,
किसान, नारी,बंधुआ मजदूर पर होने वाले त्रासदी से अवगत करवाया,

समाज में फैले छुआछूत, जातिभेद,धर्मभेद,
वेश्यावृत्ति, कर्मकांडो का खण्डन किया।

आज भी नज़र आते हैं देश के  किसानों में,
वो गोदान का होरी।

हर एक घर में ,
जुम्मन की खाला और बूढ़ीकाकी।

तुमने नारी पात्रो का चित्रण भी बखूबी किया,
स्वाभिमानी, तेजस्वी, निर्भीक और साहसी बनाया।

जिस भारत का स्वप्न तुमने देखा था कभी,
वो आज भी रह गया हैं अधूरा कहीं।

तुम हो हिंदी साहित्य के अमूल्य निधि,
शब्दो के जादूगर तुम, लेखकों के सम्राट हो,
साधारण दिखते हो ,विचारो में विराट हो।

Neha Pandit

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

इस पोस्ट पर साझा करें

| Designed by Techie Desk