- "ऐ! लड़का तनिक इधर सुनिये"|
- "जी! कहिए"|
- "ई क्या कर रहे है आप"?
- "क्या, क्या कर रहे है हम"?
- "क्या कर रहे है सो आपको नहीं मालूम| ज्यादा बनने की कोशिश तो कीजिए ही मत... ठीक है"|
- "हम क्या कर रहे है? जो आप एेतना भड़क रहे है"|
- "एेतना भी मासूम मत बनिए| आपको हम तेरह दिन से देख रहे हैं कि हम जब भी छत पर आते है तो आप अपने कमरे के खिड़की से या बालकनी के रेलिंग से टुकुर-टुकुर हमको निहारते रहते है| आपके घर में माँ-बहन नहीं है क्या"?
- "हम...! हम कहाँ देखते हैं आपको? वो तो आप ही...."
- "बड़ा बे-शर्म आदमी है जी आप| एक तो देखते भी है ऊपर से थेथरलोजी भी करते है| लगता है भैया को बतलाना ही पड़ेगा"|
इतना कह कर कृष्णकली मुँह चमकाते हुए छत से नीचे चल देती है| फूल का तो कंठ का शब्द जीभ में ही उलझ कर रह गया| कितनी बोल्ड लड़की है? दिमाग झन्ना कर चली गयी| एकदम्म बम-बिलास्ट जैसन|
एक महीना तक फूल का हिम्मत नहीं हुआ कि कृष्णकली छत पर आये तो वह बाहर बालकनी में निकल कर आ सके या फिर खिड़की पर ही खड़ा रह सके| कौन आफत मोल ले| कहीं भाई-बाप को कह आई तो बेमतलब का बात बढ़ जाएगा| और बदनामी होगी सो अलग|
हम जैसे ही गाँव से लौट कर आये तो फूल सबसे पहले हमको यही कथा सुनाने लगा| लगभग डेढ़ महीना से पेट में खुदबुदा जो रहा था बताने के लिए|
अब आपलोग सोच रहे होंगे हम कौन है? तो चलिए बतला देते है| हम खदेरन मंडल, फूल हमारा पक्का वाला जिगरी दोस्त है| बचपन से कोई बात हमारे बीच छिपी नहीं थी फिर ये कैसे छिप जाती| हम दोनो लंगोटिया यार जो ठहरे| वैसे एक बात बतला देते है हम केवल बातचीत ही नहीं बल्कि खाना-पीना, कपड़े इत्यादि भी शेयर कर लेते है| यहाँ तक कि अंडर-वियर और बनियान भी हमने शेयर की है| इत्तेफाकन हम एक ही गाँव में; एक ही दिन और लगभग एक ही समय पर जन्में भी है| बस अंतर यह है कि वह यादव वंश में जन्मा और हम मंडल के घर में| वरना हम जुड़वा ही होते| वो तनिक पढ़ने में ठीक-ठाक था इसलिए मास्टर बनने के लिए टीचर ट्रेनिंग स्कूल में नाम लिखवा लिया इण्टरमिडियट के बाद| और हम जरा भुसकोल है पढ़ने में, इसलिए अब तक इंटर में ही लटके हुए है| क्या करें करम में लिखा है नेड़्हा तो हम पेड़ा कहाँ से खाते| अब आपलोग सोच रहे होंगे हम क्या बकवास करने में लगे है तो चलिए फूल के बारे में जानते है आगे क्या हुआ ?
लगभग महीने भर बाद फिर से कृष्णकली मिल गयी फूल को नाका नम्बर - 5 पर| अॉटो रिक्शा का इंतज़ार करती हुई| क्रेज डॉल्वी से सिनेमा देख कर लौट रही थी| दरभंगा इंटर कॉलेज में पढ़ती है कृष्णकली कुमारी| कॉलेज बंक करके सिनेमा देखने में तो मास्टर-ब्लास्टर| फूल कोचिंग से पढ़ कर साइकिल टनटनाते स्पीड में नाका नम्बर - 5 से गुजरने ही वाला था कि कृष्णकली की नज़र पड़ गयी|
- "ऐ-ऐ...! लड़का रूको"|
अचानक कृष्णकली की आवाज सुन कर फूल सकपकाते हुए रूक गया|
- "जी...! जी कहिए"|
- "तनिक भी दया धरम है की नहीं आपको| एक अकेली लड़की कब से गाड़ी के लिए इंतज़ार में यहाँ खड़ी है और आप हैं कि मस्ती में साइकिल टुनटुनाते भागे जा रहे है| डर है कि नहीं है..." ?
- "अरे...! नहीं-नहीं| एेसन कोई बात नहीं है| हम आपको नहीं देखे थे| इसलिए....."!
- "इसलिए क्या? आप हमको बुझाइएगा"?
- "अइसे काहे बोल रहे है? हम सच्ची में नहीं देखे थे आपको"|
- "तो अब देख लिए है न"|
- "जी..."!
- "जी-जी क्या कर रहे हैं आप? हमारा नाम कृष्णकली कुमारी है| आप हमको कृष्णकली कह सकते है"|
- "जी"|
- "फिर से जी! .....वैसे अब चलिएगा भी या यहीं खड़े रहिएगा"?
- "पर...! पर आपका रिक्शा"?
- "गोली मारिए रिक्शा को| आप है न साथ में, फिर सफर यूँ हीं कट जाएगा| आप चलेंगे न मेरे साथ"|
- "हाँ-हाँ...! बिल्कुल चलेंगे जी"|
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