काची काया मन अथिर

काची काया मन अथिर थिर थिर  काम करंत । ज्यूं ज्यूं नर  निधड़क फिरै त्यूं त्यूं काल हसन्त ॥ अर्थ: शरीर कच्चा अर्थात नश्वर है मन चंचल है...
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तरवर तास बिलम्बिए

तरवर तास बिलम्बिए, बारह मांस फलंत । सीतल छाया गहर फल, पंछी केलि करंत ॥ अर्थ: कबीर कहते हैं कि ऐसे वृक्ष के नीचे विश्राम करो, जो बारह...
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मन मरया ममता मुई

मन मरया ममता मुई, जहं गई सब छूटी। जोगी था सो रमि गया, आसणि रही बिभूति ॥ अर्थ: मन को मार डाला ममता भी समाप्त हो गई अहंकार सब नष्ट हो ...
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कबीर संगति साध की

कबीर संगति साध की , कड़े न निर्फल होई । चन्दन होसी बावना , नीब न कहसी कोई ॥ अर्थ: कबीर कहते हैं कि साधु  की संगति कभी निष्फल नहीं होत...
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मूरख संग न कीजिए

मूरख संग न कीजिए ,लोहा जल न तिराई। कदली सीप भावनग मुख, एक बूँद तिहूँ भाई ॥ अर्थ: मूर्ख का साथ मत करो.मूर्ख लोहे के सामान है जो जल मे...
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कबीर चन्दन के निडै

कबीर चन्दन के निडै नींव भी चन्दन होइ। बूडा बंस बड़ाइता यों जिनी बूड़े कोइ ॥ अर्थ: कबीर कहते हैं कि यदि चंदन के वृक्ष के पास नीम  का वृ...
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करता केरे गुन बहुत

करता केरे गुन बहुत औगुन कोई नाहिं। जे दिल खोजों आपना, सब औगुन मुझ माहिं ॥ अर्थ: प्रभु में गुण बहुत हैं – अवगुण कोई नहीं है.जब हम अपन...
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झूठे को झूठा मिले

झूठे को झूठा मिले, दूंणा बंधे सनेह झूठे को साँचा मिले तब ही टूटे नेह ॥ अर्थ: जब झूठे आदमी को दूसरा झूठा आदमी मिलता है तो दूना प्रेम ...
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कबीर सो धन संचिए

कबीर सो धन संचिए जो आगे कूं होइ। सीस चढ़ाए पोटली, ले जात न देख्या कोइ ॥ अर्थ: कबीर कहते हैं कि उस धन को इकट्ठा करो जो भविष्य में काम ...
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माया मुई न मन मुवा

माया मुई न मन मुवा, मरि मरि गया सरीर । आसा त्रिष्णा णा मुई यों कहि गया कबीर ॥ अर्थ: न माया मरती है न मन शरीर न जाने कितनी बार मर चुक...
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हिरदा भीतर आरसी

हिरदा भीतर आरसी मुख देखा नहीं जाई । मुख तो तौ परि देखिए जे मन की दुविधा जाई ॥ अर्थ: ह्रदय के अंदर ही दर्पण है परन्तु – वासनाओं की मल...
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मन जाणे सब बात

मन जाणे सब बात जांणत ही औगुन करै । काहे की कुसलात कर दीपक कूंवै पड़े ॥ अर्थ: मन सब बातों को जानता है जानता हुआ भी अवगुणों में फंस जात...
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कबीर नाव जर्जरी

कबीर नाव जर्जरी कूड़े खेवनहार । हलके हलके तिरि गए बूड़े तिनि सर भार !॥ अर्थ: कबीर कहते हैं कि जीवन की नौका टूटी फूटी है जर्जर है उसे ख...
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