माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर, कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर। ।। हिन्दी मे इसके अर्थ ।। अर्थ : कोई व्यक्ति लम्...
तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय. कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय. ।। हिन्दी मे इसके अर्थ ।। हिन्दी अर्थ :...
दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोय। जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय ॥ ।। हिन्दी मे इसके अर्थ ।। कबीर दा...
पतिबरता मैली भली गले कांच की पोत । सब सखियाँ में यों दिपै ज्यों सूरज की जोत ॥ अर्थ: पतिव्रता स्त्री यदि तन से मैली भी हो...
एकही बार परखिये ना वा बारम्बार । बालू तो हू किरकिरी जो छानै सौ बार॥ अर्थ: किसी व्यक्ति को बस ठीक ठीक एक बार ही परख लो तो उसे बार बार...
हीरा परखै जौहरी शब्दहि परखै साध । कबीर परखै साध को ताका मता अगाध ॥ अर्थ: हीरे की परख जौहरी जानता है – शब्द के सार– असार को परखने वाल...
देह धरे का दंड है सब काहू को होय । ज्ञानी भुगते ज्ञान से अज्ञानी भुगते रोय॥ अर्थ: देह धारण करने का दंड – भोग या प्रारब्ध निश्चित है ...
कबीर हमारा कोई नहीं हम काहू के नाहिं । पारै पहुंचे नाव ज्यौं मिलिके बिछुरी जाहिं ॥ अर्थ: इस जगत में न कोई हमारा अपना है और न ही हम क...
मन मैला तन ऊजला बगुला कपटी अंग । तासों तो कौआ भला तन मन एकही रंग ॥ अर्थ: बगुले का शरीर तो उज्जवल है पर मन काला – कपट से भरा है – उसस...
हाड जले लकड़ी जले जले जलावन हार । कौतिकहारा भी जले कासों करूं पुकार ॥ अर्थ: दाह क्रिया में हड्डियां जलती हैं उन्हें जलाने वाली लकड़ी ...
कबीर सोई पीर है जो जाने पर पीर । जो पर पीर न जानई सो काफिर बेपीर ॥ अर्थ: कबीर कहते हैं कि सच्चा पीर – संत वही है जो दूसरे की पीड़ा ...
प्रेम न बाडी उपजे प्रेम न हाट बिकाई । राजा परजा जेहि रुचे सीस देहि ले जाई ॥ अर्थ: प्रेम खेत में नहीं उपजता प्रेम बाज़ार में नहीं बिकत...
पढ़े गुनै सीखै सुनै मिटी न संसै सूल। कहै कबीर कासों कहूं ये ही दुःख का मूल ॥ अर्थ : बहुत सी पुस्तकों को पढ़ा गुना सुना सीखा पर फिर भी...
साधु भूखा भाव का धन का भूखा नाहीं । धन का भूखा जो फिरै सो तो साधु नाहीं ॥ अर्थ: साधु का मन भाव को जानता है, भाव का भूखा होता है, वह...
जाति न पूछो साधू की पूछ लीजिए ज्ञान । मोल करो तरवार को पडा रहन दो म्यान ॥ अर्थ: सच्चा साधु सब प्रकार के भेदभावों से ऊपर उठ जाता है. ...
पढ़ी पढ़ी के पत्थर भया लिख लिख भया जू ईंट । कहें कबीरा प्रेम की लगी न एको छींट॥ अर्थ: ज्ञान से बड़ा प्रेम है – बहुत ज्ञान हासिल करके यद...
जब मैं था तब हरि नहीं अब हरि है मैं नाहीं । प्रेम गली अति सांकरी जामें दो न समाहीं ॥ अर्थ: जब तक मन में अहंकार था तब तक ईश्वर का सा...
मन के हारे हार है मन के जीते जीत । कहे कबीर हरि पाइए मन ही की परतीत ॥ अर्थ: जीवन में जय पराजय केवल मन की भावनाएं हैं.यदि मनुष्य मन म...
तू कहता कागद की लेखी मैं कहता आँखिन की देखी । मैं कहता सुरझावन हारि, तू राख्यौ उरझाई रे ॥ अर्थ: तुम कागज़ पर लिखी बात को सत्य कहते ह...
जल में कुम्भ कुम्भ में जल है बाहर भीतर पानी । फूटा कुम्भ जल जलहि समाना यह तथ कह्यौ गयानी ॥ अर्थ: जब पानी भरने जाएं तो घडा जल मे...