चित्रगुप्त एक नामचीन चित्रकार था । जब भी प्रतियोगिता होती तो वो अवश्य जीतता ।
गांव का रहने वाला चित्रगुप्त देखने में आकर्षक छवि का था । चित्रकारी से उसे इतना लगाव था कि, दिन रात उसी में रमा रहता ।
आजकल चित्रगुप्त हाई स्कूल में नौकरी करने लगा था । छः महीने पहले ही सरकारी नौकरी लगी थी । ग्रामीण परिवेश में पला बढा था, इसलिए सादगी कूट कूट कर भरी थी ।
जब चित्रगुप्त चौदह साल का था तभी उसके पिता ने उसकी शादी करा दी थी!
क्योंकि पिता की तबियत खराब थी! बचने की कोई उम्मीद नहीं थी, आनन-फानन में चित्रगुप्त की शादी हो गई ।
पत्नी को देखकर चित्रगुप्त का मन खट्टा हो गया! ज्यादा समझ तो थी नहीं ,लेकिन जितनी भी थी उस आधार पर आम शक्ल सूरत की सांवली रंगत और पतली दुबली सी मीरा जो आठ साल की थी! चित्रगुप्त को एक आंख नहीं भायी । शादी के छः महीने बाद ही उसके पिता की मृत्यु हो गई ।
चित्र गुप्त की मां ने कपड़े सिलकर इसे पढ़ाया लिखाया और आज चित्रगुप्त इस काबिल बन गया कि सरकारी नौकरी करने लगा । शोहरत की कोई कमी नहीं ना ही दौलत की ।
चित्रगुप्त कभी अपने ससुराल नहीं गया! मां ने कई बार टोका लेकिन उसने कोई ध्यान नहीं दिया ।
चित्रगुप्त बांका नौजवान था अब पचीस का हो गया था । कोई भी लड़की देखकर मन ही मन चाहने लगती । मगर क्या मजाल जो वह किसी को जरा भी भाव देता । सुन्दर सुन्दर लड़कियों की तस्वीरें बनाता । कुछ अलग करने की हमेशा कोशिश करता ।
किराये का कमरा लेकर चित्रगुप्त रहता था ।
उसकी चित्रकारी देखकर हर कोई हैरान था । अपने सपनों की राजकुमारी की चित्र अक्सर बनाया करता । सारे स्टूडेंट्स में होड़ मची थी सर के जैसा चित्रकार बनने का ।
इधर कुछ दिनों से एक लड़की नकाब में स्पेशली ट्यूशन के लिए विनती कर रही थी ।
तो चित्रगुप्त ने उसे शाम पांच बजे का टाइम दे रखा था । वह लड़की काफी होशियार थी । उसने शर्त रखी थी कि सर मैं नकाब में ही रहकर सीखूंगी तो, चित्रगुप्त ने कहा ठीक है। मुझे कोई एतराज नहीं है ।
बहुत कम दिनों में ही उसने अच्छी चित्रकारी सीख ली । चित्रगुप्त तो देखकर हैरान था । उस लड़की ने अपना नाम निम्मी बताया था ।
दीवानगी का सुरूर - 1 --- दीवानगी का सुरूर - 2 ---दीवानगी का सुरूर - 3
एक दिन चित्रगुप्त ने निम्मी का टेस्ट लिया !एक कठिन चित्र बनाने को कहा अगले दिन वो तो उम्मीद से भी अच्छी चित्रकारी का प्रदर्शन की थी! जिसे देखकर चित्रगुप्त का मन गदगद हो गया ।
निम्मो की काली और बड़ी बड़ी आंखें जिसमें प्यार का सोता फूटता नजर आता ।
हमेशा आधे चेहरे को निम्मो ढ़क कर रखती ।
चित्रगुप्त ने दो कमरे का फ्लैट एक बड़ा सा हाल और एक किचेन ले रखा था । निम्मी जब भी पढ़ने आती दस मिनट पहले आती और सर के कमरे की सफाई कर देती । कई बार चित्रगुप्त ने टोका भी मगर उसने कोई ध्यान नहीं दिया । संडे को दो घंटे सीखती निम्मी और फिर सर के लिए जबर्दस्ती खाना भी बना देती ।
निम्मी के हाथ का खाना इतना स्वादिष्ट होता था कि, चित्रगुप्त तारीफ़ किए बिना रह नहीं पाता ।
धीरे-धीरे निम्मी चित्रगुप्त की प्रिय स्टूडेंट बन गयी थी । चित्रगुप्त निम्मी पर बहुत ध्यान देता था । एक - एक चीज बारीकी सी सिखाता ।
एक दो दिन भी अगर निम्मी नहीं आती तो, चित्रगुप्त बेचैन हो जाता । उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था, आखिर क्यों वह निम्मी की तरफ खींचा चला जा रहा है ?
उसका मन बहुत कचोटता उसे ,आत्म ग्लानि होती कि एक स्टूडेंट के प्रति उसके दिल में ऐसी भावनाएँ क्यों पनप रही? मगर फिर भी वह खुद को ऊपर से मजबूत बनाए रखता ।
पांच दिनों के बाद जब निम्मी क्लास लेने आई तो चित्रगुप्त की जान में जान आई ।
"निम्मी इतने दिनों से कहां गायब थी" "फोन करके भी तो सूचना दे सकती थी" चित्रगुप्त ने चिंतित होते हुए पूछा ।
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"सर माफी चाहती हूं बुखार की वजह से नहीं आ सकी।" "तबियत ठीक हुई तो आई ।"
निम्मी की आंखों में भी चाहत उमड़ते हुए देखा चित्रगुप्त ने ,फिर खुद को संभाल लिया ।
"निम्मी अगले महीने प्रतियोगिता है अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर इस बार चाहता हूं कि तुम ही इस बार जीतो"
"तीन बार मैं जीत चुका मैं इस बार भाग नहीं लूंगा"
"सर ऐसा कैसे हो सकता है आप भी भाग लीजिए और मैं भी गुरू शिष्य में भी मुकाबला हो जाए"
निम्मी ने हँसते हुए कहा ।
फिर चित्रगुप्त ने हां भर दिया । फिर प्रतियोगिता की तैयारी शुरू हो गई ।
निम्मी दिल लगाकर चित्रकारी करती! इतने सुन्दर चित्र बनाने लगी कि, चित्रगुप्त भी देखकर दंग रह जाता ।
एक दिन क्लास में ही निम्मी बेहोश हो गयी । चित्रगुप्त ने उसे गोद में उठाकर, दूसरे कमरे में लेटाया और ग्लूकोज बनाकर पिलाया फिर आराम करने को कहा।
निम्मी चित्रगुप्त की आँखों में अपना अक्स देखने लगी । जल्दी से अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखके चित्रगुप्त हाल में आकर और सब प्रतियोगी को समझाने लगा । जो जो स्टूडेंट्स प्रतियोगिता में भाग ले रहे थे, सबका एक साथ क्लास लिया जा रहा था ।
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छः महीने के अंदर ही निम्मी ने वह कमाल कर दिखाया !जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी ।
निम्मी ने एक विरहिणी का चित्र बनाया था । उलझे लम्बे खुले बाल आंखों से कुछ अश्क बहते कुछ जबर्दस्ती छिपाए हुए, ऐसे भाव उजागर हो रहे थे ।
चेहरे पर मीत को पाने की उम्मीद, उसके बिना नीरस लगता जीवन । एक चित्र में इतने सारे भाव थे कि एग्जीबिशन में हर कोई निम्मी की तस्वीर के आगे आकर ठिठक जाता ।
बोलती तस्वीर थी जिसमें निम्मी ने दर्द के एहसास के साथ दीवानगी को भरपूर दर्शाया था ।
निम्मी के चित्र की कीमत एक करोड़ लगायी गयी ।
आखिरकार बहुत बड़ी प्रतियोगिता थी जिसमें निम्मी को विजेता घोषित किया गया ।
जब निम्मी का नाम घोषित किया गया तो निम्मी मंच पर गयी । निम्मी ने माइक थामा फिर बोलना शुरू किया ।
"दोस्तों अगर मैं ये प्रतियोगिता जीती इसका सारा श्रेय मेरे सर चित्रगुप्त जी का जाता है" इतना बोलने के साथ ही निम्मी ने अपना नकाब हटा दिया ।
आज चित्रगुप्त ने निम्मी को देखा तो देखते ही रह गया । चेहरा कुछ पहचाना सा लगा मगर पहचान नहीं पाया ।
इश्क़ मेरा विकलांग नहीं - 1 - इश्क़ मेरा विकलांग नहीं - 2 - इश्क़ मेरा विकलांग नहीं - 3
सांवली सलोनी निश्छल भाव, आँखों में आंसू और प्यार के जलते दीए । चित्रगुप्त की भी आखें भर आई खुशी से । निम्मी ने मंच पर चित्रगुप्त को बुलाया । विनर का अवार्ड निम्मी ने चित्रगुप्त सर के हाथ में रख दिया ।
तालियों की गड़गड़ाहट से हाल गूंजने लगा था ।
निम्मी ने चित्रगुप्त से कहा "मैं निम्मो पहचाना वही आठ साल की लड़की जिसे आपने ठुकरा दिया था"
चित्रगुप्त ये सुनकर तो हैरान हो गया ।आँखों के सामने सारा दृश्य घूमने लगा ।
"क्या निम्मी तुम ही मेरी पत्नी हो ?"
"हां सर"
खुशी से पागल हो उठा चित्रगुप्त ,मंच पर सबके सामने उसने अपनी पत्नी को सीने से लगा लिया ।
"आई लव यू निम्मो"
"आई लवयू टू सर"
निम्मो ने कहा ।
"नहीं चित्रगुप्त कहो सर नहीं"
चित्रगुप्त ने निम्मो को प्यार से डांटा ।
देखने वाले दर्शकों के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा ।
पति-पत्नी का प्यार और अनोखा मिलन देखकर सबके चेहरे खुशी से खिल उठे ।
आज निम्मो ने अपनी योग्यता साबित कर दी थी ।
अपने पति को हासिल करने के लिए बहुत मेहनत की थी । उसका प्यार जीत गया । जिंदगी अब प्रकाश मय हो गई थी ।
"हां सर"
"आई लवयू टू सर"